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राजप्रश्नीयसूत्रे
धार्गिक व्यवसाय व्यवम्यति, व्यवसाय पुस्तकरत्न प्रतिनिक्षिपति, सिंहासनात् अभ्युत्तिष्ठति, अभ्युत्थाय व्यवसायमभायाः पौरस्त्येन द्वारेण प्रतिनिष्काम्य अत्रेव नन्दापुष्करणी तत्र उपागच्छति, उपागत्य नन्दापुष्करिणी पाररत्वेन तोरणेन त्रिसोपानप्रतिरूपकेण प्रत्यवरोहति, प्रत्यवाह्य हस्तपाद प्रक्षालयति, पक्षाल्य आचान्तः चोक्षः परमशुचिभूतः एक महान्त पोत्थशायण बापड़, वापत्ता धम्मियं बलायबबलइ) उपस्थित की गई उस पु तकरत्न को उम्न मर्या भदेवने उठा लिया और उठाकर उसे खोला, ग्बोलकर फिर उसने उस पुस्तकरत्न को वांचा, वांचकर धर्मसंबंधी तच्च का निश्चय किया (बवसित्ता पोत्ययग्यण पडि निरखमइ) धर्म संबंधी तत्त्व का निश्चय करके फिर उमने उस पुस्तकरत्न को यथास्थान रख दिया. (सिंहामणाभो अभुइ) फिर वह अधिष्ठित सिंहासन से उठा. (अनुहिता बबरमायसभाओ पुरथिमिल्लेण दारेण एडिनिक वमइ, पडिनिकग्नमित्ता जेणेव नंदापुरावरिणी तेणेव उवागच्छड) उठकर व्यवसायसभा के पूर्व द्वार से होकर ब्याहर निकला और निगलकर जहां नदापुष्करिणी थी वहां पर आया (उवागच्छित्ता नदा पुक्रव रिणि पुरथिमिल्लंण तोरणेण तिसोवाणपडिहवरण पच्चोमहह) वहां आकर वह नन्दा पुष्करिणी के पूर्व के तोरण से-बहिर से-उसके पास आकर फिर श्रेष्ठ त्रिसोपानपंक्ति से होकर उस नन्दापुष्करिणी में प्रविष्ट हुआ (पच्चोरुहित्ता हत्थपाय पश्खालेइ) वहां
पात्ययस्यणं वाएड, वएता धम्मियं बनायं वयमइ) ते पुस्त २नने सूयानદેવે હાથમાં લીધું અને ત્યાર પછી તેને ખેલ્યું અને તે પુરતક રનનું વાંચન કર્યું. वांचीन ते यम सघि तत्पना निश्चय यो. (ववमित्ता पोत्थयरयणं पडिनिशान पड) A4 तमना निश्चय शन पछी तणे पुरतरत्नने यथास्थान भूटी वी (सिंहासणाओ अभुटेड) त्या२पछी ते पाताना सिंहासन पश्थी,अली थये:. (अभुट्टित्ता बचमायसभाओ पुरथिमिल्लेणं दारेणं पडिनिवखमइ, पडिनिकम्वमित्ता जेणेच नंदा पुरवरिणी तेणेव उवागच्छइ) अमेो थने त વ્યવસાયસભાના પૂર્વકારથી થઈને બહાર નીકળે અને નીકળીને જ્યાં નંદા પુષ્કરિણી डत त्यो गयो. (उवागच्छित्ता नंदापुक्खणि पुरथिमिल्लेणं तोरणेणं तिमीमाणपउिवएण पच्चोरूदइ) त्या ४ ते नारिणीन। पूर्व ताशुથી બહિર્તારથી–તેની પાસે પહોંચે અને પછી તે શ્રેષ્ઠ ત્રિપાન પંકિત થઈને તે नहा मुशिमा प्रविष्ट थी. (पच्चोखहित्ता हत्थपाय पक्खालेइ) त्या तरी