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सुबोधिनी टीका सू. ९० सूर्याभदेवस्य गन्धादिधारणवर्णनम्
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दानि केयूराणि कटकानि त्रुटितानि कटिसूत्रकं दशमुद्रिकानन्तक वक्षः- ० ' सूत्र सुरविं कण्ठमुरवि मालम्ब कुण्डले चूडामणि मुकुट पिनह्यति, पिना ग्रन्थिम-वेष्टिम-पूरिम- संघातिमेन चतुर्विधेन माल्येन कल्पवृक्षकमित्र आत्मानम् अविभूषित करोति, कृत्वा ददरमलयसुगन्धगन्धिकैः गात्राणि धवलयति, दिव्यं च सुमनोदाम पिनयति ॥ सु. ९० ॥
द्वित्ता एवं अंगाई केयूराइ कंडगाई तुडियाई कडिसुतगं, दसमुद्दाण' तग वच्छत्तग ं मुरईि कंठमुरविं पाल व कुडलाई, चूडामणिं मउड' पिण३) रत्नहार को पहिर कर फिर उसने अंगदों को पहिरा, इनके वाद केयूरों (बाजूबध) को पहिरा, इनके बाद कटकों को (वडा) पहिरा, इनके बाद टितों को पहिरा, इन के बाद कटिसूत्रको पहिरा, इसके बाद १० अङ्गुलियों में १० मुद्रिकाओं को पहिरा, इनके पहिरने के बाद वक्षःसूत्र- वक्षःस्थल में धारणीयमाला विशेष को पहिरा, इसकेबाद सुरवि भूषणविशेष को पहिरा, इसके बाद कण्ठमुरविकठाभरणविशेष को पहिरा, इसके बाद प्रालम्बौंको - इसकों को पहिरा, इनके बाद कानों में कुण्डलों को पहिरा, इनकेबाद चूडामणि को मस्तकपर धारण किया और फिर बाद में ब्रुकुट को धारण किया (पिणदित्ता गंथिम, वेढिम, पूरिमस घाइमेण चउग्विण मल्लें कप्परुक्खगं पित्र अप्पाणं अलंकियविसिय करेड़) इस तरह से पूर्वोक्त सब आभूषणों को अच्छी तरहसे पहिर करके फिर उसने ग्रन्थिम, वेष्टिम, पूरिम और सघातिम इन चतुर्विध माला से अपने आपको कल्पवृक्ष की तरह अलंकृत एव विभूषित किया. तेथे रत्नावली-२त्नभाणा-धार उरी. (पिणद्धित्ता एवं अंगयाह' केयूराइ' कडगाड़ तुडिया डिसुत्तगं, दसमुद्दाणं तग वच्छसुत्तगं मुरविं कंठमुरविं पाल व कुडलाई, चूडामणि मउड' पिणदेइ) रत्नहार पहेरीने च्छी तेथे गंगो धारण કર્યાં, ત્યારપછી કેયૂરા ધારણ કર્યાં, ત્યારબાદ કટકા પહેર્યાં. ત્યારબાદ ત્રુટિતા ધારણ કર્યા, ત્યારપછી કટિસૂત્ર ધારણ કર્યું. ત્યાર પછી ૧૦ આંગળીઓમાં ૧૦ મુદ્રિકા પહેરી, ત્યારપછી તેણે વક્ષઃસૂત્રક વક્ષ:સ્થળમાં પહેરવાનીમાળા વિશેષ પહેરી ત્યારપછી સુરવિ—ભૂ ષણ વિશેષ અને ત્યારપછી કંઠમુર્રાવ-કંઠાભરણુ વિશેષ ધારણ કર્યાં. ત્યારેપછી પ્રાલ'અકા–ઝૂમકાઓને ધારણ કર્યાં. ત્યારપછી કાનામાં કુંડળા પહેર્યાં ત્યારપછી भस्त! पर यूडामणि धारण अर्था, अने त्यारमाह भुगट धारा :यो. (पिगद्धित्ता गम, वेढिम, पूरिम, संघाइमेण चउब्विण मल्लेगं कप्परुक्खगं पित्र अप्पा अलंकियविभूसियं करेइ) मा प्रभाले पूर्व थित मधा आभूषणोथी સારી રીતે અલંકૃત થયા બાદ તેણે ગ્રંથિમ, વેષ્ટિમ, પુરિમ અને સ`ઘાતિમ આ ચતુર્વિધ માળાએથી પેાતાના શરીરને કલ્પવૃક્ષનો જેમ અલ‘કૃત અને વિભૂષિત કર્યુ.
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