________________
सुबोधिनी टीका सू. ८७ सूर्याभविमानस्य देवकृतसज्जीकरणादिवर्णनम् ५८९ विमाण कालागुरुपवरकुंदुरुक्क तुरुक्क धूवमघमघत गधुद्धयाभिरामं करेति, अप्पेगइया देवा सूरिया विमाणं सुगंधगंधियं गंधवद्विभूय करेंति, अप्पेगइया देवा हिरण्णवासं वासंति, सुवण्णवासं वासंति, रययवासं वासंति, वइरवासं वासति, पुप्फवास वासंति, फलवास वासंति, मल्लवासं वासंति, गंधवासं वासंति, चुण्णवांसं वासंति, आभरणवासं वासंति, अप्पेगइया देवा हिरण्णविहिं भाएंति, एवं सुवन्नविहिं भाएंति, रयणविहिं पुप्फविहिं० फलविहि० मलविहि० चुण्णविहि,० वत्थविहि, गंधविहि, तत्थ अप्पेगइया देवो आभरणविहिं भावंति, अप्पेगइया देवा चउव्विहं वाइत्तं वाइंतिततं विततं घणं झुसिरं, अपेंगइया देवा चउव्विहं गेयं गायंति, तं जहा-उक्खित्तायं पायत्तायं मंदायं रोइयावसाणं, अप्पेगइया देवा दुयं नट्टविहिं उवदंसिंति, अपेगइया देवा विलंबियणहविहिं उवदंसेति, अप्पेगइया देवा दुयविलंबियं णविहिं उवदंति, एवं अप्पेगइया देवा अंचियं नट्टविहिं उवदंसें ति, अप्पेग्गइया देवा आरभडं भसोलं आरभडभसोलं उप्पायनिवायपवत्तं संकुचियपसारियं रियारियं भंतसंभंतणामं दिव्व णट्टविहिं उवदंसे ति, अल्पेगइया देवा चउ. विहं अभिणयं अभिणयंति, तं जहा-दिलृतिय पाडतिय सामंतोवणिवाइयं लोगअंतोमज्झावसाणिय, अप्पेगइया देवा बुक्कारेति, अप्पेगइया देवा पीणेति अपेगइया लासे ति, अप्पेगइया देवा हकारेंति, अपेगइया देवा विणंति तंडवे ति, अपेगइया देवा वगंति अप्फो. डेंति, अप्पेगइया देवा अप्फोडे ति वग्गति अप्पेगइया देवा तिवई