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________________ ५८६ राजप्रश्नीयसूत्रे सपरिवारालख्यादिपरिवारसहिताः चतस्रः अग्रमशिष्यः, तिस्रःपरिपदःवाह्याभ्यन्तरमध्यमरूपास्विसंख्या: परिषदः, सप्त सप्तसंख्यकाः अनीकाधिपतयः पदाति-- हय--कुञ्जर--वृषभ-रथ-नाटय-गन्धर्वानोकानां स्वामिनः, षोडश आत्मरक्षकसाहरूया-पोडश-सहस्रसंख्यका आत्मरक्षाः , तथा-इतोऽतिरिक्ता. अन्येऽपि बहवः सूर्याभविमानवासिनो देवाश्च देव्यश्च तैः स्वाभाविकः अकृत्रिमैश्च, वैक्रियैः बिक्रियाशक्तिनिष्पादितैश्च वरकमलपतिष्ठान:बरकमलानि श्रेष्ठकमलानि प्रतिष्ठानानि=आश्रया येषां तैस्तथाभूतैः-श्रेष्ठ कमलपुष्पोपरि संस्थापितैः च-पुनः सुरभिवरवारिप्रतिपूर्णै:-सुरभीणि-मुग न्धीनि यानि बरवारीणि शुद्धजलानि तैः प्रतिपूर्णा: मृतास्तौः, तथा-चन्दनकृतचितैः-चन्दनेन कृतं चर्चित चर्चा-लेपन येते तथा तैः-चन्दनानुलेपयुक्तः, आविद्धकण्ठेगुणैः-अविद्धा: आक्षिप्ताः कण्ठे गुणाःम्माला येषां ते तथा तैः-कण्ठे स्थापितमाल्यैः, तथा-पद्मोत्पलपिधानः--पद्मानि-सूर्यविकाबनि उत्पलानिचन्द्रविकालीनि, कमलानि तानि. पिधानानि-आच्छादनानि वारसहित चार अग्रसहिषियों ने वाहय, आभ्यन्तर एवं मध्यमरूप परिपदाओंने, सात अनीकाधिपतियों ने, पदाति, हय, कुंजर, वृषभ, रथ, नाटय एवं गंधर्व की सेना के स्वामियोंने, १६हजार आत्मरक्षकदेवोंने, तथा इनसे भी अतिरिक्त अन्य और बहुत से सूर्याभविमानबासी देव एवं देवियोंने अकृत्रिम एवं विक्रियाशक्ति निष्पादित किये हुए कलशो से कि जो ष्ठ कमलपुष्पों पर संस्थापित है और सुगंधित शुद्ध जल से भरे हुए थे तथा जिन पर चन्दन का लेप किया हुआ था, एवं जिनके कंठो पर मालाएँ पड़ी हुई थी, तथा पदस-सूर्यविकाशी कमल एवं उत्पल-चन्द्रविकाशीकमल के ढक्कन जिनके मुख पर ढके हुए है और जो आतंकोमल करों के द्वारा परिगृहीत थे अभिषेक किया, इन कलशों में सोने के बने हुए અમહિષીઓએ બાહ્ય આત્યંતર અને મધ્યમરૂપ પરિષદાઓએ, સાત અનીકાધિપતિसामे, पहाति, य, २, वृषम, २थ, नाटय भने धनी सेनाना स्वाभीमामे, ૧૬ હજાર આત્મરક્ષક દેએ, તેમજ બીજા પણ ઘણાં સૂર્યાભવિમાનવાસી દેવદેવીઓએ અકૃત્રિમ અને વિક્રિયાશક્તિવડે નિષ્પાદિત કરાયેલાં કળશેથી-કે જે શ્રેષ્ઠ કમળપુષ્પો ઉપર સંસ્થાપિત હતાં અને સુવાસિત શુદ્ધ જળથી પરિપૂર્ણ હતાં, જેમને ચન્દનથી લિપ્ત કરવામાં આવેલાં હતાં અને જેમનાં ગ્રીવા સ્થાને માળાઓથી સુશોભિત હતાં તેમજ પ–સૂર્યવિકાશી કમળ અને ઉત્પલ-ચન્દ્રવિકાશી કમળાવડે જેમના મુખભાગ
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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