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________________ .. . टष्ट ............ . - . राजप्रश्नीयमत्र जाव.सवोसहिसिद्धथएहि य सब्विड्डीए जाव पवाएणं महया महया इंदाभिसेएणं अभिसिंचंति--।। सू० ८६॥ · ::: - 3. छायांततः वलु तं सूर्याभं देवं चतस्त्र सामानिकसाहरुवा चतस्रः अग्रमहिष्यः सपरिवाराः, तिस्रः परिपंदः, सप्त अनोकाधिपतयः पोडश . . आत्मरक्षक देय साहस यः अन्येऽपि बहवः सूर्याभविमानवासिनो देवाश्च देव्यश्च तैः स्वाभाविकैश्च बैंक्रियश्च बरकमलप्रतिष्ठानैश्च सुरभिवरवारिप्रतिपूर्ण: चन्दनकृत'चर्चितैः आविद्धकण्ठेगुणः पमोत्पलपिधान सुकुमाल कोमलपरियमीतः अष्ट "तएण तं सरियाभदेव' - इत्यादि ।,. . .. ... ..: ... सूत्रार्थ (तएण) इसके बाद (त सूर्याभं देवं चत्तोरि सामाणियसाहसीओ) उस. मूर्याभदेव का चार, छनार सामानिक देवौने (चत्तारि सपरिवाराओ" अगमहिसीओ) परिवारसहित चार अग्रमरिषियोंने (तिन्नि परिसाओ) तीन परिपदाओने (सत्त अणियाहिवाणो) सात: अनीकाधिपतियोंने (सोलस . आयरक्व देवसाहस्सी प्रो. १६हजार "आत्मरक्षकदेवोंने(अन्ने वि चवे सूर्याभविमानवासिणों देवा य देवीओ य) तथा और भी अनेक मुर्याभविमानवासी देवोंने एवं देवी यौने (तेहि साभाविएहि य विउबिएर्डि य वरकमलपइटाणेहिं यः सुरभिवरवांडिपुण्णेहि) उन स्वाभाविक एवं विक्रियाशक्ति से निष्पादित किये गये ऐसे कलशों से कि, सुन्दर, कमलों के ऊपर स्थापित कियें : गये, तथा सुंगधित उत्तम जल से भरे हुए हैं (चंदणकयचचिरहिं आविद्धक ठेगुणेहि) एवं चंदन से जिन पर लेप किया - 'तएणत मरियाभ देव' इत्यादि। ... .. सूत्रार्थ (तपण) त्या२पछी (न मरिया में देव चत्तारि सामाणिय साहस्सीओ) ते सालवना त्या२ ०२ सामानि देवाय (चत्तारि सपरिवाराओ-अगमहिसीओ) पश्चिार सहित डिपीमान (तिन्नि परिसाओ).. परिषदायाने (सत्त अणियाहिवइगो) सा..मनाधिपतिमाने (सोलस आयरक्खदेवसाहस्सीयो) सौ २ माम, वोन (अन्ने विवहवेमरियाभविमान वासिणो देवा.य देवीओ य) तेमनीn. Yogi. सूर्यासविमानवासी दोन मन हेवीमान (तेहिं. साभाविएहिं याचिउचिएहि बरकमलपइहाणेहि यसराभिवरवारिपडिण्णेहिं), તે સ્વાભાવિક અને વિક્રિયા શક્તિશી, નિષ્ણાદિત કરવામાં આવેલા કળશથી-કે જેઓ मुं१२ जान GU२. भूदा छ मला: सुवासित SHथी मरेखा छ,.(चंदण 'कयचचिएमि आाविद्धक गुणे हिं) : यनपरेमन .४२५ामान्य.छ. भने मनi श्री स्थानमा भुपमा सुशोलित छ. (पउंमुष्पलविहाणेहिं)
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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