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________________ सुबोधिनी टोका म्..३ उपपातानन्तर सूर्याभदेवाय सामानिकदेवानां कथनम् ५६५ सुधर्मायां माण के चैत्ये स्तम्भे बज्रमयेषु गोलवृत्तसमुद्गकेषु बहूनि जिनसक्थीनि संनिक्षिप्तानि तिष्ठन्ति । तानि खलु देवानुप्रियाणाम् अन्येषां च बहूनां वैमानिकानां देवानां च देवीनां च अर्चनीयानि यावत् पर्युपासनीयानि । तदेतत् खलु देवानुप्रियाणां पूर्व करणीयम्, तदेतत् खलु देवानुः प्रियाणां पश्चात् करणीयम्, तदेतत् खलु देवानुप्रियाणां पूर्व श्रेयः, तदेतत् खलु देवानुप्रियाणां पश्चात् श्रेयः, तदेतत्खलु देवानुपियाणां पूर्वमपि पश्चादपि हिताय सुखाय क्षमाय निःश्रेयसाय आनुगामिकतायै भविष्यति ।सू.८३। भविमान में स्थित सिद्वायतन में जिनोत्सेध प्रमाणमात्रावाली जिनप्रतिमाएँ १०८ स्थापित हैं (सभाए ण सुहरुमाए माणवए चेइए खंभे वहरामएसु गोलबममुग्गएछ बहूओ जिगलकहाश्रो संनिक्खित्ताओ चिट्ठति) सुधर्मा सभा में स्थित माणवक चैत्यस्तंभ में वज्रमयगोलसमुदगकों में बहुत अधिक प्रमाण में जिन अस्थियां एकत्रित की हुई रखी हैं (तोश्रो ण देवाणु. पियाण अण्णेनि च बहूण वेमाणियाण देवाण य देवीण य अच्चणिज्जाओ जाव पज्जुवासणिज्जाओ) वे आप देवोनुप्रिय के लिये तथा अन्य सत्र वैमानिक देवों एवं देवियों के लिये अर्चनीय यावर पर्युपासनीय हैं। (तं एय ण देवाणुप्पियाण पुब्धि करणिज्जं, तं एयण देवाणुप्पियाण पच्छा करणीज्ज्ज) अत: यह काम आप देवानुप्रिय के लिये पूर्वकरणीय है और आप देवानुपिय के लिये पश्चात् करणीय है। (तं एयण देवाणुप्पियाण पुब्बिसेय, त एयण देवाणुप्पियाण पच्छा सेय) यह आप देवा. नुप्रिय के लिये सब से प्रथम उचित है और यह आप देवानुमिय के सनिखित्तं चिटइ) हेवानुप्रिय मापना या विमानमा स्थित सिद्धायतनमा लिना संघ प्रभाएमात्रावाणी १०८ मिन प्रतिभान्या स्थापित छ. (लभाए ण सुहम्माए माणवए चेइए एवं मे वइरामएस गोलघससुग्गएप्सु बहुओ जिण सकहाओ संनिक्खित्ताओ चिति) सुधभा समामा स्थित भा४१४ चैत्य स्तरमा समय ગોલસમુદગમાં પુષ્કળ પ્રમાણમાં જિન અસ્થિઓ એકત્ર કરીને મૂકી રાખી છે. (ताओण देवाणुप्पिाण अण्णेसिं च बहूण वेमाणियाण देवाण य देवीण य अचणिज्जाओ जाव पज्जुवासणिज्जाओ) ते माप देवानुप्रिय भाटेतमा न्य सौ वैमानि | मन देवीगो भाटे अर्थनीय यावत् ५युपासनी - छ. (तं एय ण देवानुपियाण पुब्धि करणिज्ज, त एयं ण देवाणुप्पियाण पच्छा करणिज्ज) मेथी सौ पडसi २५ वानुप्रिय माटे 21 म. पूर्व ४२jीय छ .गने माय हेवानुप्रिय भाट २मा पश्चात ४२णीय छ, (त एयण देवाणुप्पियाण पुचि सेयं, त एयण देवाणुपिया ण पच्छा सेय)मा हेवानुप्रिय भाटे सौ प्रथम
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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