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सुबोधिनी टीका. सू. ७८ सुधर्म सभादिवर्णनम्
'तस्स णं' इत्यादि
टीका-तस्य पूर्वोक्तवर्णन विशिष्टस्य खलु देवशयनीयस्य उत्तरपौरस्त्ये = उत्तरपूर्वदिशोरन्तरालभागे-ईशानकोणे महती-विशाला एका मणिपीठिकामणिमयी वेदिका प्रप्तिा। सा मणिपीठिका अष्ट योजनानि-अष्टयोजनप्रमाणा आयामविष्कम्भेण, चत्वारि योजनानि-चतुर्योजनप्रमाणा बाहल्येन, तथा सर्वमणिमयी यावत्प्रतिरूपा । यावत्पदेन-अच्छा लक्षणा घृष्टा मृष्टा नीरजा निर्मला निष्पङ्का निष्कङ्कटच्छाय। समभा सश्रीका सोद्योता प्रासादीया दर्शनीया अभिरूपा' इति संगृहयते। अच्छादिप्रतिरूपान्तपदानामर्थश्चतुर्दशसूत्र व्याख्यायां विलोकनीय इति । तस्याः खलु मणिपीठिकाया उपरि अत्र खल, महान्=विशाल एकः क्षुल्लको महेन्द्रध्वजः प्राप्तः। स क्षुल्लको महेन्द्रध्वजः पष्टि योजनानि-पष्टियोजनप्रमाण ऊर्ध्वम् उच्चत्वेन, योजनम् एकयोजनप्रमाणो विष्कम्भेण, तथा-यनमयः= वज्ररत्नमयः, वृत्तलप्टसंस्थितसुश्लिष्ट यावत्पतिरूपः, अत्र-'वट्ठलटे' त्यारभ्य 'अभिरूवे' इत्यन्तो. महेन्द्रध्वजवर्णनपाठः ये सब हथियार बहत अधिक उज्जवल हैं, निशित हैं. वडी तीक्ष्णधारवाले हैं और प्रासोदीय ४ हैं (सभाए ण सुहम्माए उवरि अट्ठ मंगलगा झया छत्ताइच्छत्ता) सुधर्मा सभा के ऊपर भाग में आठ२ मंगलक हैं, ध्वजाएँ हैं और छत्रातिच्छत्र हैं।
टीकार्थ--इसका मूलार्थ के जैसा ही है 'सव्वमणिमई जाव पडि. रूवा' में आगत इस यावत् शब्द से 'अच्छा, श्लक्ष्णा, वृष्टा, मृष्टा, निरजा निर्मला, निष्पङ्का, निष्ककटच्छाया, स प्रभा, सुश्रीका, सोद्योता, मासादीया, दर्शनीया, अभिरूपा' इन पदों का संग्रह हुआ है, इन अच्छोदिप्रतिरूपान्त पदोंका अर्थ चौदहवें सूत्र की व्याख्या में लिखा जा चुका है 'मुसिलिट्ट. जाव पडिरूवे' में जो यह यावत् पद : आया है सो इससे यह प्रकट किया गया शस्त्री-भूस छ. (उजला; निसिया, मुतिक्खधारा, पासाईया४) मा समस्त्री બહુજ ઉજજવળ છે, નિશિત છે, બહુજ તીણ ધારવાળા છે અને પ્રાસદીય ફુ: છે.” (सभाए ण सुहम्गाए उवरि अहट मंगलगा झया छत्ताइच्छत्ता) सुधा સભાનાં ઉપરિભાગમાં આઠ આઠ મંગલકે છે, ધ્વજાઓ છે અને છત્રાહિચ્છત્રો છે.
टा—- सूत्रन। ट भूदा प्रभारी ४ छ. "सवमणिमई जाव.पडि: ख्वा' मा मासा यावत् प४थी 'अच्छा श्लक्ष्णा, घृष्टा, मृष्टा. नीरजा, निर्मला, निष्पङ्का, निष्कंकटच्छाया, समभा, सश्रीका, सोधोता प्रासादीया, दर्शनीया, अभिरूपा' मा पहानी संग्रह थयो छ. म माहिति३पान्त पहोना म १४ मां सूत्रमा वामां माव्यो छ, 'मुसिलिट्ट जाव पडिहवे' भने 'यावत्' ५४