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________________ ५३६ राजप्रशीयन म्भेण, बज्रमयो वृत्तलष्टसंस्थितमुश्लिष्ट-यावत्पतिरूपः । उपरि अष्टाष्ट मङ्गलकानि ध्वजाः छत्रातिच्छत्राणि । तस्य खलु क्षल्लकमहेन्द्रध्वजस्य पात्रात्ये अत्र खलु मूर्याभस्य देवस्य चोप्पालो नाम प्रहरणकोश: प्रज्ञप्तः, सर्ववत्रमयः अच्छो यावत्पतिस्पः। तत्र खलु सूर्याभस्य देवस्य परिघरत्न-वन-गदाधनुःप्रमुखाणि बहूनि प्रहरणरत्नानि सन्निक्षिप्तानि तिष्ठन्ति, उज्जवलानि निशितानि सुतीक्ष्णधाराणि मासादी यानि ४ । सभायाः खलु सुधर्मायाः उपरि अष्टाष्टमङ्गलकानि ध्वजाः छत्रातिच्छत्राणि ।। मृ० ७८ ॥ के ऊपर एक विशाल क्षुल्लक महेन्द्रध्वज कहा गया है. (माहि जोयणाह उई उच्चत्तेण'. जोयण' विश्व भेण, बहरामप बलट्ठसंठियमुसिलिट्ट जाव पडिरूवे) यह क्षुल्लक महेन्द्रध्वज साठ योजन का ऊँचा है. एक योजनका इसका विष्कभ है. यह वज्ररत्नमय है मुन्दर आकार वाला है यावत् पतिरूप है (उपरि अट मंगलगा-झया छत्ताइच्छत्ता) इसके ऊपर आठ आठ मंगलक हैं, ध्वजाएँ है और छत्रातिच्छत्र हैं। (तस्स पंखुड्डागमहिंदज्झयस्स पचत्थिमेण एत्थ ण सूरियाभस्त देवस्स चोप्पाले नाम पहरणकोसे पण्णत्ते) इस क्षुल्लक महेन्द्रध्वज की पश्चिमदिशा में सूर्याभदेव का चोपाल नामका आयुधगृह है (सव्ववईरामए अच्छे जाव पडिस्वे) यह आयुधगृह सर्वात्मना वज्ररत्नमय है निर्मल है, यावत् प्रतिरूप है। (एत्थ ण मृरियाभस्म फलि. यश्यण-खग्ग-गया-घणुप्पमुहा-घहवे पहरणरयणा संनिविवत्ता चिट्टति) इसमें सूर्याभ देव के परिघरत्न, खङ्ग. गदा एवं धनुष वगैरह अनेक श्रेष्ठे प्रहरण-हथियार रखे हुए हैं (उजला. निसिया, मुतिकावधारा, पासाईयाट) भडन्द्रध्व०८ उपाय छ, (सहि जोयणाई उडू उच्चत्तण, जोयण विखभेण', वइरामए बलसंठिय सुसिलिट्ठ जाव पडिरूवे) क्षुस्सा भडन्द्र साठे જિન જેટલે ઊંચે છે. આ વિષ્ફભ એક ચિજન જેટલો છે. એ વજીરત્નમય છે, सु४२ २मारवाणा छ. यावत् प्रति३५छ. (उचरिं अट मंगलगा -जया छत्ताइच्छत्ता) मेनी 6५२ २४ मा म छ, यो मन छत्रातिरछत्री छ. (तस्स ण खुट्टागमहिंदज्झयस्स पचत्थिमेण एत्थ णमरियाभस्स देवस्स चोप्पाले नाम पहरणकोसे पण्णत्ते) २. क्षुद्रमन्द्रध्वनी पश्चिमाशामा सूर्यालय न्याया' नाम मायुधगृड छ, (सव्य वईरामए अच्छे जाव पडिस्वे) मा आयुध सर्वात्मना १०५२नभय छ, निभा छ यावत् प्रति३५ छ. (एल्यण सरियाभस्स देवस्स पलिय-रयण, खग्ग-गया-धणु-प्पमुहा-वहवे पहरणरयणा संनिक्खित्ता चिति) એમાં સૂર્યાભદેવનાં પરિધ રત્ન, ખડગ, ગદા અને ધનુષ વગેરે ઘણાં ઉત્તમ પ્રહરણે–
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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