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________________ ४९५ सुबोधिनी टीका. सू. सुधर्म सभादि वर्णनम् षोडश योज " पौरस्त्ये, दक्षिणे उत्तरे । तानि खलु द्वाराणि नानि उच्चत्वेन अष्ट योजनानि विष्कम्भेण तावदेव प्रवेशेन श्वे. तानि वरकनकस्तूपिकाग्राणि यावद् वनमालाः । तेषा खलु मुखमण्डपानां भूमिभागा उल्लोकाः । तेषां खलु मुखमण्डपानाम् उपरि अष्टाष्ट मङ्गलकानि ध्वजाः छतितिच्छत्राणि । तेषाँ खलु मुखमण्डपानां पुरतः प्रत्येकं प्रत्येकं प्रेक्षागृहम ण्डपः प्रज्ञप्तः, मुखमण्डप वक्तव्याता यावद् द्वाराणि भूमिभागा उल्लोकाः ॥ सृ.७२ ॥ तीन दरवाजे हैं- जैसे पूर्वदिशा में १ दक्षिण दिशा में एक और उत्तरदिशा में १ (ते ण दारा सोलस जोयणाई', उङ्घ उच्छतेग, अट्ठजोयणाइ विक्खभेणं, तात्रइयं चेव पवेसेण) वे द्वार सोलह योजन के उंचे हैं, आठ योजन के विस्तारवाले हैंऔर आठ ही योजन के प्रवेश वाले हैं (सेवा वरकणमधूभियागो जाव वणमालाओ) ये सब द्वार सफेद हैं, श्रेष्ठ सुवर्ण की शिखरोंवाले हैं ईहा मृग आदि से लगाकर बनमालावर्णन तक का सब वर्णन पाठ यहां लगाना चाहिये । (तेसि णं मुहमंडगं भूमिभागा उल्लोया) इन सुखमंडपों के भूमिभाग और उल्लोक हैं ऐसा वर्णन भी यहां करना चाहिए. (तेसिं णं मुहमडवाण उवरिं अट्ठ मंगला झया छत्ताइच्छत्ता) उन मुख मंडपों के ऊपर आठ आठ मंगलक, ध्वजाएं एवं छत्रातिच्छत्र हैं ऐसा जानना चाहिये, (तेसिंण मुहडवाण' पुरओ पत्तेयं पत्तेयं पेच्छाघरमंडवे पण्णत्ते) इन मुखमंडपों के आगे प्रत्येक मुखमंडप में एक एक प्रेक्षागृह मंडप कहा गया है । (सुहसंडववत्तन्नया जान दारा भूमिभागा उल्लोया) प्रेक्षागृह - મડપેાની ત્રણ દિશાઓમાં ત્રણ દરવાજા છે. જેમકે પૂર્વ દિશામાં ૧, દક્ષિણદિશામ ૧, અને उत्तरद्दिशाभां१,(तेण ं द्वारा सोल्स जोयणाई. उड्ड उच्चशेण' अजोयणाई विक्ख भेण', तावइयं चेत्रपवेसेण) मे द्वारा सोण योग्न नेटसा या आयोजन भेटला अपेशवा । छ. (मेया वरकणगथूभियामा जात्र वणमालाओं) मे मधा દ્વારા સફેદ છે, ઉત્તમ સુવર્ણના શિખરાવાળા છે. ઈંહામૃગ વગેરેથી માંડીને વનમાલાના वार्जुन सुधीना समस्त पाहनो महीं संग्रह समन ( तेर्सि णं मुहम'डवाण भूमिभागा, उल्लोया) ये भुणभडयोना भूभिलागो भने उस्लो छ, भेवु भए वार्जुन खड़ीं समन्न्वु लेये. ( तेर्सिणं सुह मंडवाग उवरिं अट्ठट्ठ मंगला झया छत्ताइच्छत्ता) से भुजभउयोनी उपर आठ माह मंगलडी, वलयो भने छत्रातिछत्रो छ, आम समन्न्वु लेहये. (तेसिं णं मुहमंडवाणं पुरओ पत्तेयं पत्तेयं पेच्छाघर मंडवे पाते) मे भुभभयोनी सामे हरे हरे: भुणभउचभां येमे प्रेक्षागृह उडेवाय छ, (मुहमंडववत्तन्वया जाव दारा भूमिभागा उल्लोया) प्रेक्षागृह
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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