SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 474
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४६० -4 0 राजप्रश्नीयसूत्रे पक्खपेरंतेसु पक्खपुडंतरेसु, बहुयाई उप्पलाई पउमाई कुसुमाई णलिणाई सुभगाइं सोगंधियाइं पुंडरीयाई महापुंडरीयाई सयवत्ताई। सहस्सवत्ताई सवरयणामयाइं अच्छाई जाव पडिरूवाइ महयावासिकछत्तसमाणाई पण्णत्ताइ समणाउसो ! से एएणं अटेणं गोयमा! पउमवरवेइया-पउमवरवेइया। पउमवरवेइया णं भंते ! किं सासया ? असासया? गोयमा ! सिय सासया सिय असोसया। से केणढणं भंते !एवं बुच्चइ सिय सासया सिय असासया ? गोयमा दबट्याए सालया, वन्नपजवेहि गंधपज्जवेहि रसपज्जवेहि फासपज्जवे हि असोसया। से एएणटेणं गोयमा! एवं बुञ्चइ-लिय सासया सिय आसासया। पउवरवेइया णं भंते ! कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! ण कयाविणासि, ण कयावि णत्थि, ण कयावि ण भविस्सइ,भुवि च भवइ य भविस्सइ धुवा णियया सासया अक्खया अव्वया अवटिया णिच्चा पउमवरवेइया। साणं पउ. मवरवेइया एगेणं वणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता। __से णं वणसंडे देसूणाई दो जोयणाई चकवालविक्खंभेणं, उवयारियालेणसमे परिक्खेवेणं, वणसडवण्णओ भाणियवो जाव विहरंति। तस्सणं उवयारिलयणस्स चउदिसिं चत्तारि तिसोवाणप डिरूवगा पण्णत्ता, वण्णओ, तोरणा अट्ट मंगलगा झया छत्ताइच्छत्ता। तस्स णं उवयारियलयणस्स उवरि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते जाव मणीणं फासो ॥ सू० ७०॥
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy