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________________ ४५७ सुबोधिनी टीका. सू. ६८ वैनषण्डस्थितप्रासादावतंसकवर्णनम् योजनशते त्रीश्च क्रोशान् अष्टाविंशतिं च धनुश्शतं त्रयोदश च अजुलान् अद्धीमुलं च किंचिद्विशेषाधिक परिक्षेपेण, यो नन वाहल्येन, सर्वजाम्बूनदमयम् अच्छौं यावत् प्रतिरूपम् ॥ मू० ६९ ॥ 'मरियाभस्स गं' इत्यादि-- टोका-मर्यालस्य खलु देवविमानस्थ=मूर्याभदेवसम्बन्धिनः सूर्याभनामक-देवविमानस्य अन्तःमध्ये बहुसमरणीयः अत्यन्तसमोऽत्यन्तरमणीयश्च सत्तावोसं जोयणसए तिणि य कीले अट्ठावीसं च धणुसायाइ तेरस य अंगु. लाइ अद्धगुलं च किंचिविसेसाहियं परिक्खेवेणं ) उम बहुसकरमणीय भूमिभाग के ठीक मध्यभाग में एक विशाल उपकारिक लयन कहा गया है. यह उपकारिकालयन एक लाख योजन की लंबाई चौडाईवाला है. तथा इसको परिधि ३१६२२७ योजन की तथा ३ कोश को एवं १२८ धनुष की एवं कुछ अधिक १३॥ अंगुल की है (जोयण बाइलें गं) इसकी मोटाई एक योजन की है । (सव्वजंचूणयामए अच्छे जाव पडिरूवे) यह पूरेरूप में सर्वथा -जांबूनद नाम के सुवर्ण का है. तथा आकाश एवं स्फटिकमणि के समान अच्छ निर्मल है. यहां यावर पद से 'सण्हे, घड़े, मह, नीरए निम्मले. निप्प के, निकक च्छाए, सप्पभे, सम्सिरीए, सउज्जोए. पोसाईए, दंसणिज्जे, अभिरूवे' इस पाठ का संग्रह हुआ है। इन पदों का अर्थ १४ वें सूत्र की टीका से देख लेना चाहिये, अतः यह प्रतिरूप सवोत्तम है. अट्ठावीस धणुसयाई तेरस य अंगुलाई अद्धंगुलं च किंचिविसेसोहिय परिवखेवेणं) ते समरभाय भुभिमानी परी२ मध्यभागमा ४ वश ઉપકારિકાલયન કહેવામાં આવ્યું છે. આ ઉપકારિકાલયન એકલાખ યોજન જેટલી લંબાઈ પહોળાઈ વાળું છે, તેમજ એની પરિધિ ૩૧૬૨૨૭ ચોજન જેટલી તથા ત્રણ કેશ २८खी मने १२८ धनुषनी मने ४४४ क्यारे १३॥ २ ली छ. (जोयण बाहल्लेणं) नगेनी on15 मे यान दी छ (सव्वजंबूणयामए अच्छे जाय पडिरूवे) L सामना सुनिमित छ. तथा मा तेम०४ २४ मलिनी म अनि छ. मी यात् ५४थी 'रूण्हे, घटे, मटे नीरए, निम्मले, निप्पके, निक'कडच्छाए सप्पभे, सस्तिरीए सउज्जोए, पासाईए, दसणिज्जे अभिरूवे' पानी सड थयो छ. मा पोनी मय १४ मां सूत्रनी टी માં કરવામાં આવ્યું છે. આ પ્રતિરૂપ-સર્વોત્તમ છે.
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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