________________
राजप्रश्रीयम
श्री वीर सम्बोधनम् ते की दशा ? इनि जिज्ञासामाद--आनिनयर-नवनीतृलम्पश:- आजिनकम् - अजिनं-- नर्म निर्मित शायद वनस्पतिविशेषः, नवनीतविभाजिम, नृतं कार्पास, एतेषां स्पर्श इन स्पर्शो येषां तथा पुनः सर्वग्नमया अच्छा यावत् प्रतिरूपाः, -सर्वरत्नमयत्वाच्छ स्यादि मनिपर्यन्तविशेषणविशिष्टाः तद्विशेषणवाचकपदसंग्रहस्तदर्भ माना पतिषु प्रथिवीशिया के खन्तु बहवो वैमानिकाः सूर्याभव सन्यासितः देवा देव्य आमने- पशमुखं सामान्यतस्तिष्ठन्ति, शेरतेन तु निद्रान्ति देवानां निद्राया अभावान्, तिष्ठन्ति
९५०
आकार जैसा है. ऐसे वहां हे श्रमण ! आयुष्मन् ! नोकर गगवरादिकों ग्राम तिवी शिव है। श्रमण ! आयुष्मन् ! ऐसा यह पोवन गौतम के प्रति वीर भगवान् ने किया है। ये पृथिवी विक आणिनक - चर्मनिर्मितन्त्र के स्पर्श जैसे स्पर्शवाले हैं कृतअली आदि के तूल के स्पर्श जैसे स्पर्शवाले हैं, वृर-यनम्पति विशेष के स्वर्ण जीते हैं, नवनीत-भाषापसिद्ध के उपरी पैसे वाले है-पास के स्पर्श जैसे स्पर्शवाले हैं. ये पृथिवीमिमान है अच्छ है यावत् प्रतिरूप है। इन पदवीन विशेषण का अर्थ पहिले लिखा चुका है। इन उक्त
पर अनेक वैमानिक देव एवं देवियां अर्थात्-र्या - सामान्य रूप सेामुखविठते हैं, सोते
हैदर कर देते हैं, सोने नहीं है क्योंकि देवों के