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________________ राजप्रश्नीयसत्र सन्निहितानां :समागतानां सन्निपणानां समुपविष्टानां प्रमुदितमक्रीडितानां गीतरलिगन्धर्व हर्पितमनसां गधं पद्य कथ्यं गेयं पदबद्ध पादवद्वम् उत्क्षिप्तकं पादान्तकं मन्दं रोचितावसान सप्तस्वरसमन्वागत पदोपविममुक्तम् एको प्रश्नार्थक संबंध यहां लगाना चाहिये, ये 'भदासालवणगयोण' आदि पष्ठयन्त विशेषण 'किन्नराण' आदि पदों के है-तथा 'गज पज" आदि द्वितीयाविभत्तयन्त विशेपण 'गेय" इस पद के हैं यह सब मन में धारण करके इस मन्त्र का अर्थ इस प्रकार से करना चाहिये-(भदसालवणगयाण' वा) भद्रसालवन के भीनर गये हुए अथवा-(नंदणवणगयाण वा) नन्दन वन के भीतर गये हुए अथवा-(सोमणसवणगयाण') सौमनसवन के भीतर गये हुए, या (पंडगवणगयाणं वा) पाण्डुकवन के भीतर गये हुए, ये (हिमवंतमलयमंदरगिरिगुहासमन्नागयाणं वा) हिमाचल, मलयाचल-मन्दराचल की गुफा में एकटे हुए, या वैसे ही (एगो सन्निहियाण समागयाणं०) एक जगह इकटे हुए, एक जगह मिले हुए एक जगह बैठे हुए (पमुइयपकीलियाणं गीयरइगंधव्यहसियमणाण) प्रमुदित हुए प्रक्रीडित हुए तथा गीतानुरागी गंधर्व की तरह प्रमुदितचित्तवाले बने हुए एवं (गज पज कत्थं गेयं, पयवद्ध, पायवद्ध, उक्खित्तयं, पायत्तायं, रोझ्याक्साण, सत्तसरसमन्नागय छद्दोस वि. प्पमुक्क, एक्कार सालंकारं अट्टगुणोववेय०) गद्यमय, पद्यमय, कथनीय, पदयुक्त, पाद बद्ध, गानेयोग्य, उत्क्षिप्तक, पादान्तक, मन्द२ घोलनात्मक, रोचिता. नये. भहसालवणगयाण" वगैरेषयात विशेष 'किन्नराण" वगेरे पहाना छ. 'गज्ज पज' को द्वितीय विमइत्यात विशेष 'गेय' पहना छ. - मधु समलने मा सूत्रनाम ong नये. ( भद्दसालवणगयाण वा) मसातवनमा गये। (नंदणवणगयाण वा) नहननमा गयेसा (सोमणसवणगयाण वा) सौमनस पनमा गये। (पंडगवणगयाणं वा) पांडवनमा गये , (हिमवं तमलयमादरगिरिगुहासमन्नागयाणं वा) हिमाय, भस्यायस-रायसनी शुक्षमा ४ थये। माम १ (एगओ सन्निहियाण समागयाण) मे स्थाने सत्र थयेसा, मे स्थान मे धन मेहता (पमुइयपक्कीलियाण' गीयरइगंधन्वहसियमणाण ) प्रभुहित थयेसा, 8ll3d थयेसा तेभ गातानुति :वनी भ प्रभुति चित्तवाणा थये। मन (गज पजकत्थं गेय, पयवद्ध, पायवद्ध उक्खित्तयं, पायत्ताय रोइयावसाण, सत्तसरसमन्नागयं, छद्दो सविप्पमुक्क, एक्कारसालं कार अहगुणोववेयं०) गधभय, पद्यमय, ४थनीय, પદ્યુત પાદબદ્ધ, ગાવા ગ્ય, ઉક્ષિસક, પાદાંતક, મંદ મંદ ઘેલનાત્મક, રેચિતા
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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