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सुवोधिनी टीका. सू. ६२ सूर्याभविमानवर्णनम्र
४०९ स यथानामकः-शिबिकाया वा स्यन्दमानिकाया वा रथस्य वा सच्छत्रस्य सध्वजस्य संघण्टस्य सपताकस्यं सतोरणवरस्य सनन्दिघोषस्य सकिङ्किणि हेमजालारिलिप्तस्य हैमात्तचित्रतिनिशकनकनियुक्तदारुकस्य सुसंपिनद्धचक्रमण्डलधुराकस्य कालायससुकृतनेमियन्त्रकर्मणः आकीर्णवरतुरजाने पर, इधर उधर चलायमान किये जाने पर, हशर उधर कुछ २ चलाये जाने पर, परस्पर में संघटित किये जाने पर. अपने स्थान से चचल किये जाने पर तथा अतिशयरूप से प्रेरित किये जाने पर कैसा शब्द होता कहा गया है ? (से जहानामए सीयाए वा संदमाणीए वा रहस्स वा. सच्छत्तस्त वा सज्झ यस्ल सघटस्स सपडोगस्स सतोरणवरस्स सण दिघोसरस सखिखिणी हेमजालपरिक्खित्तस्स)जैसा शब्द पालखी का होता है,अथवा स्यन्दमानिका
का होता है. अथवा स्थका होता है वैसा ही शब्द तृण और मणियों का होता है ऐसा सम्बन्ध यहां पर लगाना चाहिये यहां से आगे रथ के ये विशेषण हैं-उनका अर्थ इस प्रकार से है-जो रथ छन्त्र सहित हो, ध्वजा. सहित हो. घंटासहित हो, पताकासहित हो, उत्तमतोरणसहित हो, नदिघोष सहित हो, क्षुद्रघटिकायुक्त सुवर्णमयजाल से परिवेष्टित हो, (हेमवयचित्ततिणिमकणगनि०) हिमाचलोत्पन्न एवं विस्मयकारक ऐसी लकडी से जो कि तिनिशवृक्ष की हो और सुवर्ण से शोभित हो बना हो, (सुसंपिणद्धचकमंडलधुरोगस्स, कालायससुकयणेमिजतकम्सस्स) चक्रमंडल और धुरा जिसकी बहुत अच्छी तरह से बंधी हुई हो, जिसके पहियों के કઈક કઈક ચાલિત કરવા બદલ પરસ્પર સંઘટિત સવા બદલ, પિતાના સ્થાનેથી ચંચલ કરવા બદલ–તથા અતિશય રૂપથી પ્રેરિત કરવા બદલ, કે શબ્દ થાય છે (से जहानामए सीयाए वा संदमाणीए वा रहस्स वा सच्छत्तस्स वा संज्झयस्स सघंटस्ल सपडागरस सतोरणवरस्स सणंदिघोसस्स सखिरिखणी हेमजालपरिक्खित्तरस ) रेवे। श४ पासणीना राय स्य-भानिशाना खाय છે, અથવા રથને હોય છે. તે જ શબ્દ તૃણ અને મણિઓને પણ હોય છે. એ અર્થ અહીં કર જોઈએ. એના પછી રથના વિશેષણોનું વર્ણન આ પ્રમાણે કરવામાં આવે છે. જે રથ છત્ર યુકત હોય, ધ્વજા સહિત હય, ઘંટાસહિત હોય, નંદિઘોષ સહિત હાય, ક્ષુદ્રઘટિકા યુક્ત સુવર્ણમય જાલથી પરિવેષ્ટિત હાય, (हेलवयचित्ततिणिसकणगनिव) हिमायदा प्रदेशमा थये। तभ०४ महमुत सेव! તિનિશ નામક વૃક્ષ વિશેષની લાકડીમાંથી કે જે સુવર્ણથી શેભિત હોય, ( मुसंपिणद्धचक्कमंडलधुरागस्स, कालायससुकयणेभिजंतकम्मस्ल )