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________________ ३२८ राजप्रश्नीयसूत्रे भवतीत्याख्यातम्, तानि खलु द्वाराणि पश्च योजनशतानि ऊर्चमुच्चत्वेन, सार्थ. ६नीयानि। योजनशतानि विष्कम्भेग, तावन्त्येव प्रवेशेन, श्वेतानि वरकनकस्तूपिकानि इहामृग-वृषभ-तुरग-नर-मकर-विहगव्यालक-किन्नर-का-शरभ चमर-कुञ्जर --बनलता-पद्मलताभक्तिचित्राणिस्तम्भोदगतवरवनवेदिकापरिगताभिरामाणि विद्याधरयमलयुगलयन्त्रयुक्तानीव अधिः सहस्रमालनीयानि रूपभवतीतिमक बाय) मूर्या भविमान की एक २ बाहा में-अबलम्बन भित्ति में एक एक हजार द्वार हैं ऐसा कहा गया है (तेण दारा पंच जोयण सयाई उद उच्चत्तेण, उड इन्जाइ' जोयणसयाई विक्खंभेणं, तावइयं चेव पवेसेण) ये प्रत्येक द्वार ५ सौ पांच सौ योजन के ऊंचे हैं और २५० के विस्तार बाले हैं। और इतने ही योजन के प्रवेश वाले हैं। (सेयावर कणगथूमि यागा) वर्ण इनका श्वेत है. उत्तम सुवर्गमय शिखरों से ये युक्त हैं ( ईहामियउसमतुरगणरमगरविहगालगकिन्नररुरुसरभचमरकुंजरवर्णलया उमलयभत्तिचित्ता, वसुग्गयवरक्यरवेइया परिग्गयाभिरामा) ईहामृग, वृषभ, तुरग, नर, मकर, विहग, व्यालक, किन्नर, रुरु, शरभ, चमर, कुंजर, वनलता, पद्मलना इनकी रचना से ये सब द्वार अद्भुत हैं। इनके स्तम्भों के ऊपर जरत्न की सुन्दर वेदिका बनी हुई है. इसमें रे बडे सुहावने लगते हैं। विजाहरजमल जुयल जंतु जुत्ताविव अचीसहस्त मालणीया) एक से आकार वाले दो २ विद्याधरों की पुत्तलिकाओं से ये भवंतीति मक्खायं) २१५ विभाननी हरे हरे पालामा-मसन लत्तिभा मे २ रेटमा हास-६ पान-मे-छ, माम ४३वाय छ. (तेण दारो पंच जोयणसपाई उड़ उबरोणं, अभइन्जाइं जोयणसयाई विक्ख भेग', तावइयं चेव पवेसेण') ५. १२३ १२४ ६१२-पाय योगनरेटली या ધરાવે છે. અને ૨૫, યોજન જેટલો વિસ્તાર ધરાવે છે એટલા જન જેટલું तेरे प्रवेश पाणुछ. (से यावर कणगमियागा) : सः २ . छ. तेभा | सानाना शिमराथी त छ (ईहामियउसभतुरगणरमगर विहगवालगकिन्नर हरुसरभवमरकुंजावणलयपउमलयभत्तिचित्ता, खंभुग्णय वरवयर वेइया परिगयाभिरामा) ४ामृत, वृषभ, तु२१, १२, भ४२, वि, या-(स), .न्निर, २(भृग विशेष) शरम, यम . २ (४थी) पनदाता, પાલતા આ સર્વની રચનાથી તે ચુક્ત તેમજ અદ્દભુત હતાં, એમના થાંભલાઓની ९५२ ०२ननी सु४२ वेछि -मेथी तभी मती सोमा सामे छ. (विजाहरजमलजुयलजंतजुत्ताविव अच्चीसरस्समालणीया) स२ १२ ॥ વિદ્યાધરની પૂતળીઓથી તે યુક્ત છે. સહ કિરણથી તે શેભિત થઈ રહ્યું છે,
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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