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________________ सुबोधिनी टीका. सू. ५४ सूर्याभविमानवर्णनम् यणलेसा सुहफासा सस्सिरीयरूवा। वन्नो दोराण तेसिं होइ- जहावइरामयाणिम्भा, रिट्रामया पइटाणा, वेरुलियमया खंभा, जायरूवोबचियपवरपंचवन्नमणिरयणकोहिमतला, हंसगममया एलुया, गोभेजमया इंदकीला, लोहियक्खमईओ दारचेडीओ, जोईरलमया उत्तरंगा, लोहियक्खमईओ सूईओ, वयरोगया संधी, नाणामणिमया ससुग्गया, वयरालया अग्गली अग्गलपालया,रययालयाओ आवत्तण पेढियाओ। अंकुत्तरपासगा निरंतरियघणकवाडा, भित्तीसुचेवभित्तिगुलिया छपन्ना तिणि होति, गोमाणलिया तत्तिया, णाणामणिरयणवालरूवगलीलटियसालभंजियागा, वयरामया कूडा, रयणामया उस्सेहा सव्वतवणिजमया उल्लोया, णाणामणिरयणजालपंजरमणिवंसगलोहियक्खपडिबलगरययभूमा, अंकामया पक्खा पखबाहाओ, जोईरसमयावंसा वंसकवे याओ, रययामयाओ पट्टियाओ, जायरूब मईओ, ओहाडणी वयरामयाओ उवरिपुच्छणीओ सव्वसेयश्यमामये पच्छायणे अंकमयाकणगकूडतवणिजथूभियागा, लेयसंखतलविसलनिम्मलदधिधणगोखीरफेणरययणिगरप्पगासा तिलगरयणद्धचंदचित्ता नाणामणि दामालंकिया अंतोवहिं च सहा तवणिजवालयापत्थडा सुहफासा मस्सिरीयल्या पासाईया दरिसणिना अभिरूवा पडिरूवा ॥ सू० ५४ ॥ छाया-मूर्याभस्य खलु विमानस्य एकैकस्यां वाहायां द्वारसहन 'मरियामरस ण विमाणस्स'. इत्यादि। मूत्रार्थ--(सूरियामस्स ण विमाणस्त एगमेगाए वाहाए वारसहस्स 'भरियाभस्स ण त्रिमाणस' इत्यादि। . सूत्रार्थ:--(सरियामस्स. ण विमाणस एगमेगाए बाहाण दारवाहमय
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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