________________
-
सुबोधिनी टीका. सू. ५१ देवर्द्धि प्रतिस हरणविषये प्रश्नोत्तरम्
२१७ ततः खलु स जनसमूहः एकं महद् अभ्रवादलकं वा वर्षवादलकं वा महावातं वा एजमानं पश्यति. दृष्ट्वा तां कूटाऽऽकारशालाम् अन्तरमनुमविश्य ग्वल निष्ठति, म तेनार्थेन गैतम ! एवमुच्यते-शरीरं गतः शरीरमनुपविष्टः ।म. ५११
... 'भनेति भयवं गोयमे' इत्यादि. टोका-भदन्त ! इति-हे भदन्त ! इति संबोध्य भगवान गौतमः श्रमण भगवतं. महावीरं वन्दने नमस्यति च, वन्दिता नमाया च एवम्-अनुपदं वक्ष्यमाणं वचर्ने अबादीत-हे भदन्त ! मूर्याभस्य बलु एप। पूर्वोक्ता दिव्या देवद्धिः देवसमृद्धिः
कूटागारशाला के समीप न बहुत दूर पर और न बहुत पास में किन्तु उचित जगह में लोकसमूह बैठा हो (तएणसे जणसमूहे एग मह अपबद्दलग वा वासबद्दलग वा महावासं वा एजमाण' पासइ) अब वह जनसमूह एक विशाल अभ्रवादक को या वर्षवादलक को यो महाबात को आते हुए देखे (पासित्ता त कूडागारसालं अंतो अणुप्पविमित्ताण चिइ) तो देखकर उस कुटाकार शाला के भीतर जैसे बह घुस जाता है (से तेण?ण गोयमा ! एवं वुच्चद सरीरं गए सरीर अणुप्पविछे) इसी कारण से हे गौतम ! मैंने ऐसा कहा है कि वह देवद्धि आदिक मब उसके शरीर में प्रविष्ट हो गया।
टीकार्थ-हे भदन्त ! इस प्रकार से संबोधित करके भगवान गौत मने श्रमण भगवान महावीर को बन्दना की. उन्हे. नमस्कार किया. वन्दना नमस्कार करके फिर उन्होंने उनसे इस प्रकार पूछा-हे भदन्त ! सूर्या. भदेन की यह पूर्वोक्त-दिव्य देवर्द्धि:-देवसमृद्धि, दिव्य देवधुति-देवप्रकाश, म पांसे पशु ना yeg यान्य स्थाने MAYS Azad डाय ( तएग से जण समृहे एग महं अभवद्दलगं वा वानवलगं वा महावास वा एजमाणं पासई) હવે તે જનસમૂહ એક વિશાળ અભ્રવાદલકને કે વધવાદકને (ઝંઝાવાતને) કે મહાपातने सावतो दुम्स (पासित्ता त कूडागारमाल' अंतो अणुप्पविसित्ता
चिट्ठइ) त्यारे २ लेने से छूटा।२ थान २५४२ २ ते प्रवेशी तय छ , (से तेणटेण गोयमा! एवं वुचइ सरीर गए सरोर अणुपविहे) तमन હે ગૌમત ! તમને હું કહું છું કે તે દિવ્યદેવદ્ધિ વગેરે સૌ તેના શરીરમાં પ્રવિષ્ટ થઈ ગયાં.
ટકાઈ હે ભદંત! આ પ્રમાણે સંબોધિત કરીને ભગવાન ગૌતમે શ્રમણ ભગવાન મહાવીરને વંદના કરી, નમસ્કાર કર્યો, વંદના તેમજ નમસ્કાર કરીને પછી તેમણે તેઓશ્રીને આ રીતે પ્રશ્ન કર્યા કે હે ભત! સૂર્યાભદેવની તે પુકત દિવ્ય