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... ... . ....... राजप्रश्नायस २२६.......
... छाया--मूर्याभ इति श्रमणो भगवान महावीरः मर्याभं देवमेवमवा. दीद-पुराणमेतत् सूर्याभ । जोतमेतत् सूर्याभ। कृत्यमेतत् सूर्याभ! करणी यमेतत् ? मूर्याभ ! आचीर्णमेतत् सूर्याभ ! अभ्यनुज्ञातमेतत् सूर्याभ! यत् खलु अवनपतिवानव्यन्तरज्योतिपवैमानिका देवा तो भगवतो वन्दन्ते, नमस्यन्ति वन्दित्वा नमस्यित्वा ततः पश्चात् स्वानि स्वानि नामगोत्राणि कथयन्ति तत् पुराणमेतत् सूर्याभ ! यावत् अभ्यनुज्ञातमेतत् मूर्याभ मू० २८॥
'सरियामाइ समणे भगवं महावीरे' इत्यादि ।
मूत्रार्थ-(मरियामाइ) हे मूर्याभ इस प्रकार से सम्बोधन करके (समणे भगवं महावीरे) श्रमण भगवान् महावीर ने (मरिया दे एवं
दयासी) उस मूर्या भदेव से इस प्रकार कहा-(पोराण मेयं मूरियामा ! जीय .. मेयं सरियामा ! किच्चमेयं मृरियामा ! करणिजमेयं मरियामा ! आइष्णमेयं
मुरियाभा! अभणुण्णायमेयं सरियाभा!) हे मूर्याभ! यह वन्दनादि निरबंध कर्म पुराण है. चिरकाल से चला आ रहा है. हे सूर्याभ ! यह । देवताओं का जीतकल्प है, हे मूर्याभदेव ! यह कर्तव्य है, हे मुर्याभदेव ..! यह सर्वे, के द्वारा पाचरणीय है तथा प्राचीन पुरुषों द्वारा यह आच.. रित हुआ है, हे मूर्याभदेव ! इस प्रकार से निरवद्य कार्य करने की अनुः मोदना की गई है. (जंणं भवणवइयाणमंतरजोइसवेमाणिया देवा. अरहंते भगवते वदंति, नमसंति वंदित्ता, नमंसित्ता तो पच्छा साई माई नाम गोत्ताई साहिति) जो भवनपति, वानव्यन्तर, ज्योतिषिक और वैमानिक १५.. मरियाभाइ समणे भगवं महावीरे ! इत्यादि।
सूत्रार्थ:-(मरियाभाइ) 8 सूर्याल! ALप्रभा गाधीन (समणे. भगवं महावीरे) श्रभा भावान महावीर (मरियानं देवं एवं वयासी) ते सूर्यान, हवने सा प्रमाणे . युं (पोसणमेयं मूरियामा ! जीयमेयं सरियामा! किच्चमेयं मरियाभा! करणिज्जमेय मूरियामा! आइण्णामेयं ! सरियाभा ! अभणुण्णायमेयं मूरियामा !) सूर्याल ! 1 बहन को निश्वध ४ पुराण छ. थिरકાલથી ચાલતું આવે છે. હે સૂર્યાભ!. આ દેવતાઓને જીતકક૫ છે હે સૂર્યાભ દેવ ! मा प्रतिव्य छ. 3 सूर्याम हेव! स भाट आयीय. छ. तेभर प्राचीन हवा 48 आ. मायरित थयेट छ. है सूर्याभव!, U: प्रमाणे नि२५ अभः ४२वानी
गनुभाहली पाभा भावी. छ. (जणं भवणवइवाणमंतरजोइसवेमाणिया देवा • अरहते भगवते वंदंति, नमसंति, वंदित्ता, नमंसित्ता तओ पच्छा साई
साई नामगीनाइ साहिति) सपनयति, पानध्य तर, न्योतिषि: मने मानिः ..