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सुबोधिनी टीका. सू. २४ भावद्वन्दनार्थ मूर्याभस्य गमनव्यवस्था १९९ अवशेषा देवाश्च देव्यश्च तदिव्यं यानविमानं यावद् दाक्षिणात्येन त्रिसोपानपतिरूपकेण आरोहन्ति, आरुह्य प्रत्येकर पूर्वन्यस्तेषु भद्रासनेषु निषीदन्ति ।। सु. २४ ॥ २ पुत्रवणत्थेहि भदासणेहिं णि पीयंति) चढकर वे अपने २ पूर्वनियोजित " भद्रासनों पर जाकर बठ गये (अवसेसा देवा य देवीओ य तं दिवं जाणविमाणं जाव दाहिणिल्लेणं निसोवाणपडिस्वएणं दुरूहति) बाकी के देव
और देवियो भी उस दिव्य यान विमान पर यावत् दक्षिण दिशा की ओर की त्रिसोपान पंक्ति से होकर चढ़े (दुरूहित्ता पत्तेयं २ पुनणत्थेहि भद्दा. सणे निसीयंति) चढकर वे प्रत्येक अपने २ पूर्व नियोजित भद्रासनों पर जाकर बैठ गए, इसकी भी टीका का अर्थ इसी मूलार्थ जैसा है। 'हट्ट जाव हियए' में जो यह यावत् पद आया है उससे 'हष्ट पद से लेकर हृदय तक के पदों का ग्रहण हुआ है. तथा च-हष्ट तुष्ट चित्तानन्दिताः पीतिमनाः, परमसौमनस्यितः, हर्षवशविसपढदयः, ये सब पद यहाँ गृहीत हुए हैं। इन पदों की व्यख्या तृतीय मूत्र में की गई है। विशिष्ट आकार का नाम प्रतिरूपक है. उस विमान की जो त्रिसोपानपंक्ति थी वह विशिष्टाकार से युक्त थीं. अतः ऐसी प्रतिरूपक त्रिसोपानपंक्ति से होकर वह उस दिव्य यान विमान पर चढ़ा। 'जाणविमाणं जाब दाहिणिल्लेण' में जो यह यावत् "द आया है-उससे 'अनुप्रदक्षिणीकुर्वन्तः २' इस पद हित्ता पत्तय २ पुठवणत्थेहि भद्दामणेहिं णिसीयति) यीन ते पातपाताना निश्चित मद्रासना ५२ ४४ने मेसी 1या. (अवसेसा देवा य देवीओ य
दिव्व जाणविमाण जाव - दाहिणिल्लणं. तिसोवाणपडिस्वएण दुरूहति) श्री २स व अने हेवीमा पर ते हिव्य. यान विभान ५२. यावत् दक्षिण दिशानी त२३नी त्रिसोपान पति ९५२ थने यदया. (दरुहिता प तेयं २ पुव्यणत्थेहि भदासणेहि निसीयंति) यदी ते १२४ पातपाताना पूर्व निश्चित ભદ્રાસને ઉપર જઈને બેસી ગયા. આ સૂત્રને ટીકાથે પણ ભૂલાઈ જે જ છે. 'हट्ट जाब हियए' भो रे ' यावत' प छ तेथी " हृष्ट" पहथी भांडान " हृदय" सुधानो पानी रायड, ४२वाभा मा०यो छ रेभ " हृष्टतुष्टचित्तानन्दितः प्रीतिमनाः परमसौमनस्थितः, हर्षवश विसपदयः' मा सवे पो माही या ४२वामा साव्यां छ. मा पहानी. व्याच्या त्री सूत्रमा ४२वामा भावी છિવિશિષ્ટ આકારનું નામ પ્રતિરૂપક છે. તે યાનવિમાનની જે ત્રણ નિસણીઓ વાળા પાન પંકિત હતી તે સવિશેષ આકારવાળી હતી. એવી તે સીડીઓ ઉપર થઈને તે દિવ્ય यानविमान ५२ यढयो. जाण विमाणं जाव दाहिणिल्लेणं'
भ यावत् ।