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________________ सुबोधिनी टीका. सू. १७ भगवद्वन्दनार्थ सूर्याभस्य गमनव्यवस्था क्रौश्चावलीति वा हाराबलीतिबा चन्द्रावलीति वा शारदिकबलाहक इति वा, ध्मातधौतरूप्यपट्टइति वा शालिपिष्टराशिरिति वा कुन्दपुष्पराशिरिति वा कुमुदराशि-रितिवा शुष्कच्छिवाडीति वा पेहुणमिञ्जिकेति या विसइति वा मृणालिकेति वा गजदन्त इति वा लबगदलकइति वा पुण्डरीकदलकइति वा श्वेताशोक इति वा श्वेतकरवीर इति चा, श्वेतवन्धुजीव इति वा भवेद् एतद्रूप स्यात? नो अयमर्थः समर्थः, ते खलु शुक्लाःमणयः इत इष्टतरका एव यावद् वर्णन प्रज्ञप्ताः ॥मू. १७॥ है (कुमुदो दग दगरयदहियणगोरखीरपूरे इ वा) कुलुद, उदक, उदकरज-नलकण, दधिधन गाढा दही, गाय का दुग्धपूर(हंसाबलोइ वा, कोंचावलीइ वा, चंदावलीइ वा, सारइयबलाहएइ वा, घंतधोयरूप्पपट्टेइ वा) हमावली, कोंचावली, हारावली, चन्द्रावलि शरदकालको मेघ जैसा सफेद होता है, तथा पहिले अग्नि में तपाया गया और बाद में पानी में डालकर अच्छी तरह से साफ किया गया ऐसा रजतपत्र (चांदीका पतडा) (सालिपिहरासीइ वा, कुंदपुप्फरासीइ वा, कुमु. दरासीद वा, सुक्कच्छिवाडीइ वा) शालिधान्य की चूर्णराशि, कुन्दपुष्पराशि, कुमुदराशि, शुष्कशिम्वाफली, (पिहुणमिजियाइ बा, भिसेह वो, सुणालियाइ वा, गयदंतेइ वा लवंगदलएइ वा. पोंडरीयदलएइ वा, सेयासोगेइ वा, सेयकणवीरेइ वा, सेयवंधुजीवेइ वा) मयूरपिच्छ का मध्यवर्ती अथवा, कमलिनी का मृणाल, कमलनाल का तन्तु, गजवन्त (हाथी का दांत), लवङ्गादल पुण्डरीकदल, श्वेत अशोकक्ष, श्वेत करेन का वृक्ष और श्वेत बन्धुजीव जैसा શંખ સફેદ હોય છે, ચન્દ્રમા સફેદ હોય છે, કુંદ પુષ્પ સફેદ હોય છે, દાંત સફેદ डाय छ, (कुसुदोदगदगरयदहिघणगोक्खीरपूरेइ वा) अभु ४४, ४४ २०४ NexY, धिधन- डी यनु दुग्धपूर, (हंसावलीई वा, कोंचावलीई वा, हारावलीइ वा, चंदावलीई वा, सारयालाहएई वा घतधोयरुप्पपढेइ वा હંસાવળી, કેચાવળી, હારાવલી, ચંદ્રાવળી, અને શરદ કાળને મેઘ જેવા સફેદ હોય છે, તેમજ પહેલાં અગ્નિમાં તપાવવામાં આવેલું અને ત્યારબાદ પાણીમાં નાખીને सारी शते सा३ ४२ मे २०४तपत्र (योहानु पत्रु) (सालिपिढरासीइ वा, कुंदपुप्फरासीइ वा, कुमुदरासीइ वा मुक्कच्छिवाडीइ वा) यामान बोट, पुपनी ढा, भु पुपने दो शुष्ठ शिवी, (पिहणमिजियाई वा भिसेइ वा मुणालियाइ वा गजदंतेई वा, लवंगदलएइ वा, पोंडरीयदलएइ वा, सेयासोगेइ वा, सेयकणवीरेइ वा सेयवंधुजीवेइ वा) भारना पीछानी मध्य ભાગ કમલિની મૃણાલ, કમળનાળ તંતુ ગજદંત, (હાથીને દાંત) લવંગ દલ, પંડરીકલ, વેત અશોક વૃક્ષ, શ્વેત કનેરનું વૃક્ષ અને સફેદ બંધુ જીવ જે પ્રમાણે
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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