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________________ १२२ राजप्रशीयन अर्चिः सहसमालनिका परमहलसिलाः भासमानाः बा लास्यगानाः च . लोकनश्णेपाः शुरूपशी अधीकपा मासादीया दर्शनी अभिरूपाः मनिरूपाः। ३ भिराभा, विजाहर जमलजुमलाजुत्तालिन अञ्ची सहल मालगिया) प्रत स्तंभ के ऊपर बनी हुई श्रष्ट बलवेदिका से युक्त होने के कारण के सय सुन्दर थे, तथा समान आकारबाले दो विद्याधर वा यंत्रों से ये युक्त थे, हौकडो किरणों से ये शोभित बने हुए थे. (स्मगलसकलिया, निसमागा, विभिनमाणा) सोडी मार के स्पों से-कारों से ये युक्त थे. सामान्य एवं विशेष रूप से गो बलत अधिक चमकीले थे (चश्व. लोयणलेसा) देवन्दे पर वे ऑग्मो में समाये जा रहे हैं ऐसे (सुहफासा, खस्सिरियस्या, पानाईया, दरिमणिज्जा, अभिजवा पडिकबा) इनका स्पर्श वडा ही कोमल था. इनका आकार बडा ही नुहावना था, ये प्रासादीय थे, दर्शनोय थे, अभिरूप वाले एवं प्रतिरकर नाले थे। इसकी टीका का अयें इस पृला जला ही है। विबिहमुत्तरोनचिया' यहाँ पर जो अन्तरा शब्द आया है बद सद्यगि वीच्या अर्थवाला नहीं होता हैं. परन्तु यहाँ सामथ्र्य से उसे चीक्षा का गमक होने से 'बीच २ में' इस अर्थ में लिया गया है। 'ईहामिय' से लेकर 'पडिरूया' तक के विजाहरजमलजयलजंतजुत्ताविन अच्चीसहनमालमिया ) ४२ थालता ઉપર કતરેલી શ્રેષ્ઠ વા વેદિકાથી યુકત હોવાથી તે સર્વે સુંદર હતા, તેમજ સરખી આકૃતિ વાળા બે વિદ્યાધ રૂપ યંત્રીથી યુકત હતા સેંકડો કિરણોથી તે શેજિત હતા" (ख्वगसहरसकलिया, भिसमाणा विविध समाणा) से माना पाथी-BABाराया युत उता. सामान्य मने विशे! ३५थी ते ८ मा युटत ता. ( खुल्लो . यणलेला) नेवाम तेरी मांगोमा समाविष्ट 45 तय तेवा ता. (सुहफासा सरिसरीयरूवा, पालाई पा, दरिलगिना, अभिरूपा पडिरूबा) तेभने। २५ पड જ કેમળ હતો. તેમનો આકાર બડ જ રમણીય હતે. તે પ્રાસાદીય હતા, દર્શનીય હતા, અભિરૂપ તેમજ પ્રતિરૂપ વાળા હતા. _मा पनी आने व्यर्थः सूसा प्रभारी ४ छ. 'विविहात्ततररूको बचिया' 4 2 २' १५६ मायेसो छ म तो ते वीस' • (બેવડાવવું) અર્થ વાળો નથી છતાંએ અહીં સામર્થ્યથી ન વીસા ગમક હેવાથી ये १२३ ' 241 | भाटे पडी प्रयुत यो छ. 'ईशामिय' थी मांडान . .... - Y1 सुधान! पोनी व्या11 ११ मां सूत्रमा वाम मावी छ. गटदा , હવત્ દર્શનીય અને આઈ લેવી જોઈએ. એ મૃ. ૧૩
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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