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सुबोधिनी टीका. स. १३ भगवद्वन्दनार्थ सूर्याभस्य गमनव्यवस्था
१२१ छाया-तेषां खलु त्रिसोरानप्रतिरूपकरणां पुरतस्तोरणान् विकरोति, ते खलु तोरणाः नानामणिमयाः नानामणिमयेषु स्तम्भेष उपनिविष्टसंनिविष्टविविधतान्तरारूपोपचिताः विविधतारारूपोपचिलाः ईहामृगषमतरगनरमकरविहग व्याल किन्नर रुरु-शरथ-चमर-कुब्जर बनलता-पन्नलतोयक्तिचित्राः स्तम्भोद्गतवरवज्रवेदिकापरिगताभिरामाः विद्याधरयमलयुगल यन्त्रमुत्ता इव । तेति णं तिलोवाणपडिख्वगाणं'
सार्थ---(तेलिपं तिलोवाणपडिरूवगाणं पुरओ तोरणे विउन्धइ) - इसके बाद उसने तीनसोपानपंक्तियों के आगे तोरणों झी विकुणाी .
(तेणं तोरणा जाणामणिमया) वे तोरण अनेक मणियों के बने हुए थे (णागामणिमएसु थंभेसु उत्रनिविद्वसंनिविविविहलुत्ततररूयोवचिया) तथा विविध प्रकार के मणिमय स्तंभों के ऊपर ये उपनिविष्टपास पास में निश्चल रूप से स्थित थे। तथा वीच २ में विशिष्ट आका . रोपेत अनेक प्रकार के मुक्ताफलों से युक्त थे. (विविह ताराख्योबचिया) तथा अनेक प्रकार के आकार वाले जैसे तारागण होते हैं उसी प्रकार के आरारों से ये उपशोभित थे (ईहामिय-उसम-तुरगणर-मकर-विहगबाल-किंनर-रुरु-सरम-चमर-कुंजर-वणलय-पउमलयभत्तिचित्ता) ये सब तोरण ईहाग-वृक. कृपस, घोडा, मनुष्य, मगर, पक्षी, व्याल-सप, किन्नर-व्यन्तर देविशेष, मृग, अप्टाप, चमरीगाय, हाथी, वनलता एवं पालता इन सब के चित्रों से युक्त थे. (खं झुग्गयवरकहरवेझ्यापरिगया
' तेहिं ण तिलोवाणपडिरूषगाणं'
सूत्राथ:-(तेलि तिसोशणपडिचगाणं पुरओ तोरणे विउचाइ) त्यार पछी ते ते नाणे सोपान पतिमान माना तोशनी विशु ४२१.(ते णं तोरणा णाणामणिसया) ते तो l मणियाना मनेसा उता. (णाणामणिगए थंसेमु उपनिविद्वसंनिविधिविहसुनतररूपात्रचिया ) मा l જાતના મણિઓના થાંભલાઓની ઉપર એ ઉપનવિષ્ટ–પાસે પાસે-નિશ્ચલ રૂપમાં સ્થિત હતા. તેમજ વચ્ચે વચ્ચે-સવિશેષ આકારોવાળા ઘણી જાતના મેતિઓથી યુકન હતા. (विविह तारारूपोवचिया) ते तन १२
वाम ताराम डाय छे. तपा १ आतिथी तो शामित हु. (ईहामिय उसमतुरग-गर-मकर-विडग
बाल-किंनर-हरु-हरभ-चमर-कुंजर-वणलय-उमलय भत्तिचित्ता) Pal या ताभृग, ४ (१२) वृष, 31, भास, भग२, पक्षी, व्यास-स-२“તર દેવ વિશેષ મૃગ, અષ્ટાપદ, ચમરી ગાય, હાથી, વનલતા અને પાલતા २मा सना शिatथी मुत हता, (खभुग्गयवरवइरवेइया परि...