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राजप्रश्नीयमन्त्र वर्षम् आमलकल्पां नगरीम् अाम्रशांलयनं चत्यं श्रमणं भगवन्तं महावीरमभित्र
न्दितुम्, तद् यूयमपि खलु देवानुप्रियाः ! मर्वर्था यावद् अकालपरिहीन__ मेव सूर्याभस्य देवस्यान्तिके प्रादुर्भवत । मु० ९॥ ___'तएणं से पायत्ताणियाहिबई' इत्यादि
टीका-ततः मर्याभदेवाज्ञानन्तरम्, खल स पदात्यनीकाधिपति:देवः सूर्याभेन देवेन एवम्-अनन्तरोक्तम् उक्तः-क येतः सन दृष्टतुष्ट यायवृदयःसुनिये (आणवेइ भो सरियामे देवे गच्छइ ण भो मरियाभे देवे) सूर्याभदेव ने आप सबके लिये एसी आज्ञा दी है क्यों कि वे मूर्याभदेव जा रहे है (जबुडीवं दीव भार वाम आमलकप्पं नयरी अंथमालवण चेइय समण भगवं महावीर अभिवंदित्तर) जम्बूद्वीप नामके द्वीप में वर्तमान भरत क्षेत्र में स्थित आमल कल्पा नगरो के आम्रसालवन उद्यान में विरा. जमान श्रमण भगवान महावीर को वन्दना के लिये (तं तुम्भे वि ण देवाणुप्पिया ! सविडोए जात अकालपरिहीण चेत्र मृरियाभम्स देवस्स अंतिए पाउन्भवह) इसलिये हे देवानुप्रियो ! आप लोक भी समस्त ऋद्धि से युक्त होकर यावत् विलम्ब किये विना बहुत ही शोघ्र मूर्याभदेव के पास पहुंच, जावें।
टीकार्थ-सूर्याभदेवने जब पदाति-अनीकाधिपति से ऐसा कहा-तब वह बहुत अधिक हष्ट हुआ,-तुष्ट हुआ, उसका चित्त आनन्द से आनन्दित हो गया. उसके मनमें बडी प्रीति जगी और शोभन मनवाला वह बन गया. भने सुमाथनी बात समजा भाट गाडी येत्र या छी. (आणवेड भो मुरियाभे देवे) गच्छइ णं भो ? सूर्यासवे तमा। सौ भाटे मेवी माशा छ भ . सूर्यालय मडीथी (जंबुद्दीवं दीवं भारहवास आमलकप्पनर अंबसालवण चेइय भगवं महावीर अभिवंदिनए) द्रीय नामना द्वीपमा विद्यमान मरतक्षेत्रमा स्थित माम લકા નગરીના આદ્મશાલવન ઉદ્યાનમાં વિરાજમાન શ્રમણ ભગવાન મહાવીરની अमिय 11 ४२५. भाटे ४४ रह्या छ. (तं तुम्भे विण देवाणुप्पिया ! सचिट्टीए जाव अकालपरिहीण चेत्र मरियाभस्स देवस्स अतिए पाउन्भवह) सभी से દેવાનુપ્રિયે! તમે સૌ પિતાની સમસ્ત કદ્ધિની સાથે યાવતું મોડું કર્યા વગર એકદમ શીધ્ર સૂર્યાભદેવની પાસે પહોંચી જાવ.
ટીકાર્ય-સૂર્યાભભદેવે જ્યારે પાયદળ સેનાના સેનાપતિને આ પ્રમાણે કહ્યું. ત્યારે તે ખૂબ - જ હષ્ટ તેમજ સંતુષ્ટ થયે. તેનું ચિત્ત આનંદથી તરબોળ થઈ ગયું. તેના મનમાં
બ જ પ્રીતિ ઉત્પન્ન થઈ અને તે શોભન મનવાળા થઈ ગયે. એટલે કે સૂર્યાભ