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सुबोधिनी टीका स. ९ भगद्वन्दनार्थ सूर्याभस्य गमनव्यवस्था
छाया-ततः खलु स पदात्यनीकाधिपतिर्देवः सूर्याभेन देवेन एवमुक्तः सन् हृष्टतुष्टयावदयः एवं देव ! तथेति अज्ञायाःविनयेन वचनं-प्रतिश्रृणोति, प्रतिश्रत्य यत्रै। सूर्याभं विमानं सुधर्मा सभा यौव मेघौघरसि. तगम्भीरमधुरशब्दा योजनपरिमण्डला सुस्वरा घण्टा सत्रैव उपागच्छति, उपा. गम्य तां मेघौघरसितगम्भीरमधुर शब्दां योजनपरिमण्डलां सुस्वरां घण्टां त्रिकृत्व
मार्थ--(तएण से सुरियाभेणं एवं बुत्ते समाणे पायत्ताणियाहि वई देवे) इस प्रकार सूर्याभदेव के द्वारा आज्ञापित हुअा यावत् उसका हृदय आनन्द से आनन्दित हो गया और बोला (एवं देवा ! तहत्ति आणार विणएणं वयणं पडिसुणेति) हे देव ! जैसी आप आज्ञा देते हैं-वह हमें प्रमाण है इस प्रकार कहकर उसने उसके प्रदन आज्ञा के वचन को घडे विनय पूर्वक स्वीकार कर लिया (पडिमुणित्ता जेणेव सरियाभे विमाणे जेणेव सुहम्मा सभा जेणेव मेघोघरसियगंभीरमहुरसबा जोयणपरिमंडला सुस्सरा घंटा तेणेव उवागच्छइ) स्वीकार करके फिर वह जहां सूर्याभविमान था और उसमें भी जहां सुधर्मा सभा थी, और उसमें भी जहां वह मेघों के समुदाय के गर्जित जैसे गंभीर मधुरशब्दवाली एक योजन प्रमाण बर्तुलाकार विशिष्ट सुस्वरा नाम को घंटा थी, वहीं पर आया (उवागच्छित्ता तं मेवोपरसियगंभीरमहरसह जोयणपरिमंडलं सुस्सरं धंट तिकखुनो उल्लालेइ) वहाँ आ करके उसने उस मेयों
.' तएणं से पायत्ताणियाहिबई देवे' इत्यादि ।
सूत्रार्थ:-(तएणं से सरियामेणं देवेण एवं वुत्ते समाणे पायत्ताणियाति: वई देवे) सूर्याय ५ माज्ञापित थये ते पाहया सेनानी मधिपतिनाय: (हतु४० जाब हियए) अति मने संतुष्ट थतो यावत तेनु यं मानस्थी मान1ि 25 आयु मने माझ्या (एवं देवा ! तहत्ति आणाए विण: एण वयणं पडिसुणेति) हेव !2वी मा५ माज्ञो माया छ। ते सभा। भाई પ્રમાણ રૂપ છે. આ પ્રમાણુ કહી તેણે તેના વડે અપાયેલા આજ્ઞાના વચનેને બહ नम्रता पूर्व २वी३।२ ४ सीधा ( पडिमुणित्ता जेणेव सूरिया, विमाणे जेणे सुहम्मा सभा जेणेव मेघोघरसियगंभीरमहुर सदा जोयणपरिमंडला सुम्सरा घंटा तेणेव उवांगच्छ8) l२ शने ते त्या सूर्यालविभान हुतु भने त
જ્યાં સુધર્મા સભા હતી અને તેમાં પણ જ્યાં તે મેઘોના સમૂહના જેવી ગંભીર મધુર શબ્દ કરનારી એક યોજન પ્રમાણ વર્તુલાકારે વિશિષ્ટ સુર નામની ઘંટ ती, त्या माव्या. ( उवागच्छित्ता त मेघोघरसियग भीरमहुरस जोयणे :
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