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________________ । . . . . . . पिनास २९६ वा जाव सुक्कलेस्साणं सा णो खलु सा पम्हलेस्सा तत्थगया ओसका, से तेगटेणं गोयसा ! एवं वुच्चइ-जाव णो परिणलइ ॥सू० २२॥ पण्णवणाए भगवई ए लेस्सापए पंचमुसो समत्तो । छाया-कति खलु भदन्त ! लेश्याः प्रज्ञप्ता ? गौतम ! पडलेश्याः प्रज्ञताः, तद्यथाकृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या, तन् नूनं भदन्त ! कृष्णलेश्या नीललेश्यां प्राप्य तद्रूपतया तवर्णतया तद्गन्धतया तसतया तत्स्पर्शतया भूयो भूयः परिणमति ? पत्राधिक्यं यथा चतुर्थ उद्देशकस्तथा भणितव्यं यावद् वैडूर्यमणिदृष्टान्त इति, तत् नूनं भदन्त ! कृष्णलेश्या नीललेश्यां प्राप्य नो तरूपतया यावद् नो तत्स्पर्शतया भूयो भूयः परिणमति ? इन्त, पंचम उद्देशक शब्दार्थ-(कह णं भंते ! लेस्साओ पण्णत्ताओ?) हे भगवन् ! लेश्याएं कितनी कही हैं ?) गोयमा! छ लेस्साओ पण्णत्ताओ) हे गौतम ! छह लेश्याएं कही हैं (तं जहा-कण्हलेस्सा जाव सुक्ललेस्सा) के इस प्रकार-कृष्णलेश्या यावत् शुक्ल लेश्या (ले नूणं भंते ! कण्हलेस्ला नीललेस्सं पप्प) हे भगवन् ! क्या कृष्णलेश्या नीललेश्या को प्राप्त हो करके (ता स्वत्साए ता वन्नताए ता गंधत्ताए ता रसत्ताए ता फासत्ताए) तद्रूपता से, तवर्णता, सदूगंधता, तद्रसता, तत्स्पर्शता से (भुजोर) वार-वार (परिणमह) परिणमन करती हैं ? (इत्तो) यहां से (आढसो) आरंभ किया हुआ (जहा च उत्थओ उद्देसओ तहा भाणिय) जैसा चौथा उद्देशक कहा, वैसा कह लेना चाहिए (जाव वेरुलियमणि दिलुनो) वैडूर्यमणि के दृष्टान्ततक (से गूणं भंते ! कण्हलेस्सा नीललेस्सं पप्प णो ता रूवत्ताए जव णो ता फासत्ताए भुज्जो भुज्जो परिणमइ ?) हे भगवन् ! कृष्णलेश्या नीललेश्या को પંચમ ઉદ્દેશક शहा-(कइ णं भंते । लेस्साओ पण्णत्ताओ १) सावन् ! वेश्याय 32ी ४. छे! (गोयमा छ लेस्साओ पण्णत्ताओ) 8 गौतम छ श्यामा ४९सी छे (तं अहा-कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा) ते २0 ४ २-४ वेश्या यावत् शुसवेश्या (से नूणं भंते ! कण्हलेस्सा नीललेस्मं पप्प) 3 लान् । शु शुवेश्या नीरसेश्याने प्राप्त २७२ (ता रूवत्ताए ता पन्नत्ताए, ता गंधत्ताए, ता रसत्ताए ता फासत्ताए) तद्रूपताथी, तवणुता, तहगता, तसता, तस्पताथी (भुज्जो भुज्जो) १२२ (परिणमइ) पश्मिन ४२ छ ? (इत्तो) माडी थी (आढत्तो) मार ४३८ (जहा चउत्थओ उद्देसओ तहा भाणियव्यं) नेवी या उद्देश४ ४यो, तेव ' या पायी श४ ४ी सेवे। नये (जाव वेरुलियमणिदिदंतो) वैय मायिना ष्टान्त सुधी. . (से णूणं भंते । कण्हलेस्सा नीललेस्सं पप्प णो ता रूवत्ताए जाव णो ता फासत्ताए भुज्जोभुज्जो परिणमइ १) भवन् ! शुन्युवेश्या नादवेश्याने याभान ततायी यावत् तपश
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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