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यत्
फलं तस्य रसास्वादव वा, 'कुडगछल्लीइ वा' कुटजत्त्रम् - फुटजस्य- वृक्षविशेषस्य त्वक्उपरितनवल्कलस्तस्य स्वाद इतिचा, कुडगफाणिएडवा' कुटजफाणितम् - कुटजस्य फाणितं क्वाथस्तस्य रसास्वादव वा 'कडतुंबी वा' कटुकतुम्बी - प्रसिद्धा दस्या आस्वादव दा 'कडुगतुवीफलेइ वा' कटुकतुस्वीफलमिति वा कटुकतुम्च्या यत्फलं तस्य रसास्वादव या 'खारतउसीइ वा' क्षारत्र पुपी - कटुकत्र पुपी - कटुककर्कटिका तस्या रसास्वाद इति वा 'खार तउसीफळे वा' क्षात्रपुपीफलम् - कटुत्र पुषीफलम् तस्य रसास्वादव वा 'देवदाली वा' देवदाली - रोहिणी तथा रसास्वादन वा 'देवदाली पुप्फे वा' देवदालीपमिति वा देवदाल्या रोहिण्या यत् पुष्पं तस्य रसास्वादव वा 'मियालुंकी वा' मृगवालङ्कीफलम् - मृगवालुङ्कयाः-वनस्पतिविशेषात्मिकायाः यत्फलं तस्य रसास्वादव वा, 'घोसाड एइवा' घोपातकीप्रसिद्धा तस्या रसास्वाद इति वा 'घोसाडिफले इ.वा' घोपातकीफलम् - प्रसिद्धाया घोपातक्या यत् फलं तस्य रसास्वादव वा 'धण्हकंदएइ वा' कृष्णकन्दो नाम अनन्तकाय वनस्पतिविशेषः तस्य रसास्वादव वा, 'वज्जक दएड वा' वज्रकन्द इति वान्दो नाम अनन्तकाय वनस्पति विशेषस्तस्य रसास्वादइव वा कृष्णलेश्या आस्वादेन प्रज्ञता, भगता एतावति प्रतिपा
रस के समान, कुटज के फल के रस के समान, कुटज की छाल के रस के समान, कुटज के क्वाथ के रस के समान, अथवा कटुक तृवी के रस के समान, कटुक तुंबीफल के समान, कटुक ककडी के रस के समान, कटुक ककडी फल के रस के समान, देवदाली अर्थात् रोहिणी के रस के समान, देवदाली के पुष्प के रस के समान, मृगयालुंकी नामक वनस्पति के रस के समान, मृगवालुंकी के फल के रस के समान, कटुक तोरईफल के रस के समान, तोरई फल के रस के समान कृष्णकन्द नामक अनन्तकाय वनस्पति के रस के समान, अथवा वज्रकन्द नामक अनन्तकाय वनस्पति के रस के समान कृष्णलेश्या का रस कहा गया है ।
भगवान् के द्वारा इतना प्रतिपादन करने पर गौतमस्वामी पुनः प्रश्न करते हैं - हे भगवन् ! क्या कृष्णलेश्या इसी प्रकार के रस वाली होती है ?
કવાથના રસની સમાન અથવા કડવી તુખડીના રસની સમાન, કડવા તુખી ફળની સમાન, કડવી કાકડીના રસની સમાન, ડેવી કાકડીના ફળના રસની સમાન, દેવદાલી અર્થાત્ રાહિણીના રસની સમાન, દેવદ્યાલીના પુષ્પના રસની સમાન, મૃગવાલુ કી નામની વનસ્પતિના રસની સમાન મૃગવાસુકીના ફળના રસની સમાન, કડવા (તુરીયા)ના રસની સમાન, તેરાઈ કૂળના રસની સમાન, કૃષ્ણેન્દ નામના અનન્તકાય વનસ્પતિના રસની સમાન અથવા વન્દે નામના અનન્ત કાય વનસ્પતિના સમાન કૃષ્ણલેશ્યાના રસ કહેલા છે. શ્રી ભગવાન્ દ્વારા એટલું પ્રતિપાદન કરાતાં શ્રી ગૌતમસ્વામી પુન: પ્રશ્ન કરે છે હું ભગવન શું કૃષ્ણવેશ્યા એવાં પ્રકારના રસવાળી હાય છે?