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________________ २६७-२७२ २७२-२९४ २९५-३०९ ३१०-३२५ ३२६-३२९ ३२९-३४३ लेश्या के परिणामद्वार का कथन २२ लेश्या के स्थान का निरूपण पांचवा उद्देशक लेश्या के परिणमन का निरूपण छट्ठा उद्देशक २४ मनुष्यादिकों में लेश्यासंख्या का निरूपण ___ अठारहवां कायस्थितिपद अधिकार संग्रह का कथन जीवादि कायस्थिति का निरूपण जीवों के सेन्द्रियपने का निरूपण कायद्वार का निरूपण सूक्षप्रकायस्थिति का निरूपण योगद्वार का निरूपण वेदद्वार का निरूपण कपायहार का निरूपण लेश्यावाले जीवों के लेश्याकाल का निरूपण ३४ ' सम्यक्त्ववाले जीवों के सम्यक्ता का निरूपण ज्ञानद्वार वा निरूपण दर्शनद्वार का निरूपण संगतद्वार का कथन आवारद्वार का निरूपण ३९ भापाहार का निरूपण उन्नीसा पद सम्यक्त्वपद का निरूपण अंतक्रिया पद का निरूपण एक समय में अन्तक्रिया करने का निरूपण नैरपिकों के नैरयिकादिकों में उद्वर्तन का निरूपण ३५६-३६५ ३६५-३८३ ३८४-३८८ ३८९-४०१ ४०९-४१८ ४१८-४२४ ४२४-४३४ ४३५-४३९ ४४०-४४६ ४४६-४५५ ४५५-४७६ ४७६-४८३ ४८४-४९४ ४९४-५०२ ४०२-५१९
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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