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सल२५
श्री प्रज्ञापनासूत्र भा. ४ का विषयानुक्रमणिकां अनुक्रमाङ्क
विषय
सत्तरहवां लेश्यापद प्रथमउद्देशक उद्देशार्थ संग्रह का कथन
१-४ नैरयिकों के समानकर्मादि का निरूपण
५-२२ नैरयिकों के समान क्रियादि का निरूपण
२२-२९ भवनपतिदेवों के समानाहारादि का निरूपणम्
२९-३८ पृथ्वीकायिकादि के समवेदनादि का निरूपण
३८-४६ मनुष्यों के समानाहारादि का निरूपण
४६-५५ वानव्यन्तरदेवों के समानाहारादि का निरूपण
५५-५८ सले श्यजीवों के आहारादि का निरूपण
५९-७३ उद्देशक दूसरा लेश्या विशेष का कथन
७४-१८ नैरयिकादिसलेश्य के अल्पबहुत्व का निरूपण ११ मनुष्यादि के सळेश्य अल्पवहुत्व का कथन
११७-१४३ जीवादि के सलेश्य अल्पवहुत्व का निरूपण
१४३-१५२ उद्देशक तीसरा नरयिकों के उत्पत्यादि का निरूपण
१५३-१८५ नैरयिकों के अवधि और दर्शनादिज्ञेय क्षेत्रपरिमाण का निरूपण १८५-१९९ लेश्याश्रय ज्ञान का निरूपण
२००-२०४ चौथा उद्देशक उद्देशार्थ संग्रह
२०५लेश्यापरिणमन का निरूपणम्
२०५-२१९ लेश्या के वर्णका निरूपण
२२०-२४४ लेश्या के रसपरिणाम निरूपण
२४४-२६१ लेश्या के गंधपरिणाम का निरूपण
२६१-२६७