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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद १६ सू. २ जीवप्रयोगनिरूपणम् ज्योतिष्कवैमानिकानां यथा नैरयिकाणाम् । टीका- अथ पूर्वोक्तान् पञ्चदशप्रयोगान् जीवादिस्थानेषु प्ररूपयितुमाह- 'जीवाणं भंते । कइविहे पओगे पण्णत्ते ?' हे भदन्त ! जीवानां कतिविधः प्रयोगः प्रज्ञप्तः १ भगवानाह - 'गोयमा !' हे गौतम ! 'पण्णरसविरे पओगे पण्णत्ते' जीवानां पञ्चदशविधः प्रयोगः प्रज्ञप्तः, समुच्चयजीवापेक्षया सर्वदैव पञ्चदशानामपि प्रयोगाणामुपलभ्यमानत्वात् 'सच्चमणप्पओगे जाव कम्मासरीरकायप्पओगे' सत्यमनःप्रयोगो यावद्-असत्यमनः प्रयोगः, सत्यमृषामनः प्रयोगः, असत्यामृषायनःप्रयोगः, सत्यवचःप्रयोगः, असत्यवचः प्रयोगः, सत्यमृपावचः प्रयोगः, अपत्यामृषावचः प्रयोगः, औदारिकशरीरकायप्रयोगः, औदारिकमिश्रशरीरकायंपओगे पण्णत्ते) हे गौतम ! पन्द्रह प्रकार का प्रयोग कहा है (तं जहा) वह इस प्रकार ( सच्च मणप्पओगे) सत्यमनः प्रयोग (जाव कम्मासरीरकायप्पओगे) यावत् कार्मणशरीर काय प्रयोग " ધ ( वाणमंतर जोइसिवेमाणियाणं) वानव्यन्तर, ज्योतिष्क, वैमानिको का ( जहा नेरयाणं) जैसे नारकों का टीकार्थ-अव पूर्वोक्त प्रन्द्रह प्रयोगों का जीव आदि स्थानों में प्ररूपण किया जाता है गौतम स्वामी प्रश्न करते हैं-हे भगवन् ! जीवों के प्रयोग कितनें प्रकार के कहे हैं ? भगवन - हे गौतम! जीवों के प्रयोग पन्द्रह प्रकार के कहे हैं, क्योंकि समुच्चय जीवों की अपेक्षा से सदैव पन्द्रहों प्रयोग कहे जाते हैं । वे प्रयोग इस प्रकार हैं - (१) सत्यमनः प्रयोग (२) असत्यमनः प्रयोग (३) सत्यमृषामनः प्रयोग (४) असत्यानृपासनः प्रयोग, (५) सत्यवचन प्रयोग, (६) असत्यवचन प्रयोग, (७) सत्यमृषावचन प्रयोग (८) असत्या मृषावचन प्रयोग (९) औदारिकपण्णत्ते ) हे गौतम ! चंदर अरना प्रयोग ह्या छे ( तं जहा ) ते या अरे ( सच्चमणपओगे) सत्य भन, प्रयोग ( जाव कम्मासरीरकायप्पओगे ) यावत् अभय शरीर आय प्रयोग ) ( वाणमंतरजोइसियवेमाणियाणं ) वानव्यन्तर, ज्योतिष्ठ वैभानिनो ( जहा नेरइयाण ) જેવા નારાના ટીકા :——હવે પૂર્વોક્ત પદર પ્રયાગાનુ જીવ આદિ સ્થાનમાં પ્રરૂપણ કરાય છે શ્રી ગૌતમસ્વામી પ્રશ્ન કરે છે-ભગવન્! જીવાના પ્રયોગ કેટલા પ્રકારના કહ્યા છે ? શ્રી ભગવાન્ હે ગૌતમ ! જીવાના પ્રયાગ પંદર પ્રકારના છે, કેમકે સમુચ્ચય જીવાની અપેક્ષાએ સદૈવ પદર પ્રયાગ કહેલા છે. તે પ્રયેગા આ પ્રકારે છે ઃ— (१) सत्य भनः प्रयोग ( २ ) असत्य भनः प्रयोग (3) सत्य भूषा भनः प्रयोग (४) असत्या भृषा भनः प्रयोग (4) सत्य वयन प्रयोग (१) असत्य - वयन: प्रयोग (७)
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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