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________________ प्रमैयबोधिनी टीका पद ११ सू. ६ जीवभाषकनिरूपण ३२३ एतेनार्थेन गौतम ! एवमुच्यते जीवा भापका अपि, अभापका अपि, नैरयिकाः खलु भदन्त ! किं भाषकाः, अभापकाः ? गौतम ! नैरयिका भापका अपि, अभापका अपि. तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते-नैरयिका भापका अपि, अभापका अपि ? गौतम ! नैरयिका द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-पर्याप्तकाश्च, अपर्याप्तकाश्च । तत्र खलु ये ते अपर्याप्तकास्ते खलु अभापकाः तत्र खलु ये ते पर्याप्तकास्ते खलु भाषकाः, तत् एतेनार्थेन गीतन ! एवमुच्यते-नैरयिका भापका अपि, अभापका अपि, एवम् एकेन्द्रियवर्जानां निरन्तरं भणितव्यम् ॥ सू० ६॥ अपज्जत्तगाले अभासंगा) इन में जो अपर्याप्त हैं, वे अभाषक हैं 'तत्थ णं जे ते पज्जत्तगाते गं भासगा) उनमें जो पर्याप्तक हैं, वे भाषक हैं (से एएणटेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ-जीवा भासगा वि, अभालगा वि) इस हेतु से हे गौतम ! ऐसा कहा है कि जीव भाषक भी होते हैं, अभाषक भी होते हैं। __(नेरइया णं भंते ! किं भासगा, अभासगा?) हे भगवन् ! नारक क्या भापक हैं या अभापक ? (गोयमा ! नेरझ्या भासगा वि, अभासगा वि) हे गौतम ! नारक भाषक भी हैं, अभाषक भो (से केणठे भंते ! एवं वुच्चइ-नेरड्या भासगा वि, अभासगा वि) किस हेतु से हे भगवन् ! ऐसा कहा है कि नारक भाषक भी हैं, अभाषक भी हैं (गोयमा ! नेरइया दुविहा पण्णत्ता) हे गौतम! नारक दो प्रकार के कहे गए हैं (तं जहा-पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य) वे इस प्रकार-पर्याप्त और अपर्याप्त (तत्थ णं जे ते अपज्जत्तगा) उनमें जो अपर्याप्त हैं (ते णं अभासगा) वे अभाषक हैं (तत्थ णं जे ते पज्जत्तगा तेणं भासगा) उनमें जो पर्याप्त हैं, वे भाषक हैं (से एएणढे णं गोयना ! एवं वुच्चई-नेरइया भासगा वि, अभालगा वि) इस हेतु से हे गौतम! ऐसा कहा जाता है कि नारक सावक भी हैं, अमाषक मास (तत्थणं जे ते अपज्जत्तगा तेणं अभासगा) तमाम २ म त छ, तमा मला५४ छ (तत्थणं जे ते पज्जत्तगा ते णं भासगा) तेयामा म पति छ, तमा साष४ छ (से एएणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-जीवा भासगा वि, अभासगा वि) से હેતુથી હે ગૌતમ ! એવું કહ્યુ છે કે જીવ ભાષક પણ હોય છે, આભાષક પણ હોય છે (नरइयाणं भंते । किं भासगा अभासगा ?) 3 सावन् ! ना२४ शुला५४ छे मार समाष४ छ ? (गोयमा ! नेरइया भासगा वि, अभासगा वि) हे गौतम ! ना२४ माष पर छ, मला५४ ५ छ (से केणठेणं भंते ! एव बुच्चइ-नेरइया भासगा वि, अभासगा वि) ॥ तुथी भगवन् ! ये ४ह्यु छ , ना२४ भाष: ५५ छ, मलाष४ ५९४ छ (गोयमा ! नेरइया दुविहा पण्णत्ता) ॐ गौतम! ना२४ मे प्र४२ना सा छे (तं जहा पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य) ते मा ४ारे-पात भने २५पर्यास (तत्थणं जे ते अपज्जत्तगा) तमामाथी रेमो मर्यात छ ( णं अभासगा) तो मला छे (से एएणद्वेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ-नेरइया भासगा वि, अभासगा वि) से उतुथी गौतम ! यु टु छ है ना२४
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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