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________________ २५० महापनासूत्र स्त्रीवाक्-स्त्रीलिङ्गाभिधायिनी शाला माला लतेत्यादि स्वरूपा भापा, या च पुरुपवाक्-घटः - पट इत्यादि स्वरूपा भापा, या च नपुंसमवाक्-धनं वनमित्यादि स्वरूपा भाषा कि प्रज्ञापनीयं भापा भवति ? नैपा मापा मृषेति तथा च शाला घट धनादयः शब्दा यथाक्रमं स्त्रीपुनपुसकलिङ्गाभिधायका वर्तन्ते किन्तु 'स्तन केशवतीनारी लोमशः पुरुषः स्मृतः । उभयोरन्तरं यच्च तदभावे नपुंसकम् ॥ इत्यादिलौकिकलिङ्गलक्षणाभावात् कथमिय प्रज्ञापनी भाषा सम्भवतीति प्रश्नः, भगवानाइ-हंता, गोयसा!' हे गौतम ! इन्न-सत्यमेतत्, गौतमस्वामी पुनः प्रश्न करते हैं-भगवन् ! यह जो स्त्रीवाचक भाषा है, जैसे शाला, माला, लता आदि जो पुरुष वाचक भाषा है, जैसे घट पट आदि, और यह जो नपुंसकवाचक भाषा है, जैसे धनम् , वनम् आदि, यह भाषा क्या प्रज्ञापनी है ? यह भाषा मृषा नहीं है ? तात्पर्य यर है कि शाला आदि शब्द स्त्रीलिंग कहे जाते है, घट आदि शब्द पुलिंग कहे जाते हैं, धन आदिशब्द नपुंसक कहलाते हैं, किन्तु इन शब्दों में न तो स्त्रीलिंग पाया जाता है, न पुलिंग और नपुंसकलिंग ही देखा जाता है। जैसे कहा है जिसके बडे-बडे स्तन और केश हो, उसे स्त्री समझना चाहिए जिसके सभी अंगों में रोष हों उसे पुरुष कहते हैं। जिसमें स्त्री और पुरुष-दोनों के लक्षण घटित न हों, उसे नपुंसक जानना चाहिए।' तात्पर्य यह है कि शाला, माला आदि शब्दों में स्त्री के उक्त लक्षण नहीं होते । घट, पट आदि शब्दों में पुरुष का लक्षण नहीं पाया जाता । धन आदि नपुंसकलिंगी कहलाने वाले शब्दों में नपुंसक का लक्षण नहीं होता । ऐसी स्थिति में किसी शब्द को स्त्रीलिंग, किसी को पुलिंग और किसी को नपुंसक लिंग कहना क्या वास्तव में सत्य है ? ऐसा कहना क्या मिथ्या नहीं है ? શ્રી ગૌતમસ્વામી પુન. પ્રશ્ન કરે છે...હે ભગવન! આ જે સ્ત્રી વાચક ભાષા છે, रेम शाला, माला, लता मा, २ ३५वाय भाषा छ, म घट , पटः २मा भने मारे नस पाय४ माषा छ, रेमा धनम्, वनम् आहिये भाषा शु-प्रतापनी छ એ ભાષા મૃષા નથી ? તાત્પર્ય એ છે કે શાલા આદિ શબ્દ સ્ત્રીલિંગ કહેવાય છે ઘટ આદિ २४ पु४ि पाय छे, धनं आदि शब्द नस४ ४वाय छ, पY 20 शोमा नथी स्त्री નથી પુલિંગ અને નથી નપુંસકલિ ગ જોવામાં આવતું જેમ કહ્યું છે–“જેના મોટા મોટા સ્તન અને કેશ હોય તેને સ્ત્રી સમજવી જોઈએ જેના બધા અગમાં રેમ હોય તેને પુરૂષ કહે છે. જેમાં સ્ત્રી અને પુરૂષ બન્નેના લક્ષણ ઘટતા હોય, તેને નપુંસક જણૂવા જોઈએ. તાત્પર્ય એ છે કે શાલા માલા આદિ શબ્દમાં સ્ત્રીના ઉક્ત લક્ષણ નથી હોતા ઘટ, પટ આદિ શબ્દોમાં પુરૂષના લક્ષણ નથી મળતાં ધન આદિ નપુંસક કહેવરાવનારા ઢામાં નપુંસકના લક્ષણ નથી હતાં. એવી સ્થિતિમાં કઈ શબ્દને સ્ત્રીલિ ગ કેઈ ને અંતિગ અને કેઈને નપુંસકલિંગ કહેવું તે વાસ્તવમાં સત્ય છે? એવું કહેવુ શું મિથ્યા નથી ?
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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