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प्रमेययोधिनी टीका पद ६ सू.१ उपपातोद्वर्तनानिरूपणम् विरहिता उपपातेन प्रज्ञप्ता ?' हे गौतम ! जघन्येन एक समयम् उत्कृप्टेन द्वादश मुहूर्तान् देवगतिः खलु भदन्त ! कियन्तं कालं विरहिता उपपातेन प्रज्ञप्ता ? हे गौतम ! जघन्येन एकै समयम्, उत्कृप्टेन द्वादशमुहर्तान् सिद्धगतिः खलु भदन्त ! कियन्तं कालं विरहिता सिद्ध्या प्रज्ञप्ता ! हे गौतम ! जघन्येन एक समयम् उत्कृष्टेन पडूमासान् निरयगतिः खल भदन्त ! कियन्तं कालं विरहिता उद्वर्तनया प्रज्ञप्ता ? गौतम ! जघन्येन एक समयम्, उत्कुष्टेन द्वादश मुहूर्तान् , गौतम ! जघन्य एक समय तक, उत्कृष्ट बारह मुहूर्त तक .
(देवगई णं संले ! केवइयं काल विरिहिया उवधाएणं पण्णत्ता ?) हे भगवन! देवगति कितने काल तक उपपात से रहित कही गई है? (गोयमा ! जहण्णेणं एगं समय उस्कोलेणं वारस मुहुत्ता) हे गौतम ? जघन्य एक समय तक, उत्कृष्ट बारहखहर्त तक
(सिद्धगई णं भंते ! केवयं कालं विरहिया सिझणाए पण्णत्ता?) हे अगवन् ! सिद्धगति कितने काल तक सिद्धि से रहित कही गई है ? (गोयमा ! जहण्णेणं एगं समयं उक्कोसेणं छम्मासा) हे गौतम ! जघन्य एक समय तक, उत्कृष्ट छहमहीनों तक
(निस्यगई णं भंते केवइयं काल विरहिया उच्चट्टणाए पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! नरकगति कितने काल तक उद्घतना से रहित कही गई है ? (गोयना ! जहण्णेणं एक्कं समय उक्कोसेणं बारस मुहुत्ता) हे गौतम ! जघन्य एक समय, उत्कृष्ट बारह मुहूर्त (तिरियगई णं બાર મુહૂત સુધી
(देवगईणं भंते ! केवइयं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता?) भगवन् ! हे गति ८॥ ४७ सुधी ७५यातथी २हित ४ी छ१ (गोयमा ! जहण्णेणं एगं समयं उकोसेणं वारस मुहुत्तो) 3 गौतम ! धन्य मे समय जट બાર મુહૂર્ત સુધી
(सिद्ध गईणं भंते ! केवइयं कालं विरहिया सिझणाय पण्णत्ता ?) मापन् ! सिद्ध गतिमा सुधा सिद्धिथी २डित सी छ ? (गोयमा ! जहणेणं एगं समयं उकोसेणं छम्मासा) हे गौतम ! धन्य २४ समय सुधी, १e છ મહીના સુધી
(निरयगईणं भंते ! केवइयं कालं विरहिया उव्वट्टणाए पण्णत्ता?) लगवन् ! न२४ गत सा समय सुधी विनायी सहित ४ाई छे ? (नोयमा ! जहण्णेणं एकं समयं, उकोसेणं बारस मुहुत्ता) गौतम ! धन्य : समय, ઉત્કૃષ્ટ બાર મુહૂર્ત