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________________ प्रमेयवोधिनी टीका पद ५ सू.१६ सामान्यस्कन्धपर्यायनिरूपणम् २१५ जवन्यगुणकालकानां भदन्त ! पुद्गलानां कियन्तः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! अनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः, तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते-जघन्यगुणकालकानां पुदगलानासनन्ताः पर्यवाः प्राप्ताः ? गौतम ! जयन्यगुणकालकः पुदगलो जघन्यगुणकालकस्य पुद्गलस्य द्रव्यार्थतया तुल्यः, प्रदेशार्थतया पदस्थानपतितः, अवगाहनार्थतया चतुःस्थानपतितः, स्थित्या चतुःस्थानपतितः, कृष्णवर्णपर्यवैस्तुल्यः, अवशेषैः वर्णगन्धरसस्पर्शपर्यवैश्च पदस्थानपतितः, तत् तेनार्थेन गौतम ! अपेक्षा भी चतुःस्थानपतित होता है _(जहण्णगुणकालघाण भंते ! पोग्गलाणं केवड्या पज्जवा पण्णत्ता) हे भगवन ! जघन्यगुण काले पुद्गलों के कितने पर्याय कहे हैं ? (गोयना ! अणता पज्जया पणत्ता) हे गौतम ! अनन्त पर्याय कहे हैं (से केजण ते! एवं बुच्चइ जहष्णगुणकालयाणं पोग्गलाण अणंता पज्जवा पणत्ता) हे भगवन ! किस कारण ऐसा कहा जाता है कि जघन्यगुण काले पुद्गलों के अनन्त पर्याय हैं ? (गोयमा ! जहण्णगुणकालए पोग्गले जपणगुणकालयस्ल पोग्गलस्स व्वयाए तुल्ले) हे गौतम ! जघन्यगुण काले पुगल ले दूसरा जघन्यगुण काला पुद्गल द्रव्य की अपेक्षा तुल्य होता है (पएलट्टयाए छट्ठाणवडिए) प्रदेशों की अपेक्षा पदस्थानपतित होता है (ओगाहणठ्याए चउट्ठाणवडिए) अचगाहना ले चौस्थानपतित होता है (ठिईए चउठाणवडिए) स्थिति से चौस्थानपतित होता है (कालचपणपज्जवेहिं तुल्ले (काले वर्ण के पर्याय स्थितिवाणा पY मे ४ारे (नवरं ठिहए वि चद्वाण वडिए) विशेष स है સ્થિતિની અપેક્ષાએ પણ ચતુસ્થાન પતિત થાય છે (जहण्णगुणकालयाणं भंते ! पोग्गलाण केवइया पज्जवा पण्णत्ता ?) के सागवन् ! धन्य गुणु पुगसान सा पर्याय ४ा छ ? (गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता) : गौतम ! अनन्त पर्याय ४ह्या छ ? (से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चइ जहण्णगुणकालयाणं पोगलाणं अर्णता पज्जवा पण्णता ?) ॐ लसવન્ ! શા કારણે એવું કહેવાય છે કે જઘન્ય ગુણ કાળા પુદ્ગલેના અનન્ત पर्याय छ ? (गोयमा ! जहष्णगुणकालए पोग्गले जहण्णगुणकालयस्स पोग्गल. स्स दबयाग. तुल्ले) र गौतम ! धन्य गुर ५ सयी oiled धन्य शुY पुस द्रव्यनी अपेक्षा तुम्य याय छे (पापसदृयाए छटाणवहिए) प्रशानी :१५मारे १३था नियाय छे (ठिईए चाणवटिय) रियतिथी २॥२ स्थान पतित याय (काल वच्न पजवेदि तुल्ले) l पाना पायथा
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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