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________________ प्रमेयधोधिनो टीका पद३ सू.५ कायद्वारनिरूपणम् गुणाः, सकायिकाः विशेषाधिकाः, एतेषां खलु भदन्त ! सकायिकानां पृथिवीकायिकानाम् अकायिकानाम, तेजस्कायिकानाम् वायुकायिकानाम् वनस्पतिकायिकानाम् त्रसकायिकानाम् अपर्याप्तकानाम् कतरे कतरेभ्योऽल्पा वा, बहुका वा, तुल्या वा, विशेषाधिका वा ? गौतम ! सर्वस्तोकास्त्रसकायिकाः अपर्याप्तकाः तेजस्कायिकाः अपर्याप्तकाः असंख्येयगुणाः, पृथिवी कायिकाः अपर्याप्तका विशेपाधिकाः,' अप्कायिकाः अपर्याप्तका विशेपाधिकाः, वायुकायिका अपर्याप्तका (वणस्सइकाइया अणंतगुणा) वनस्पतिकायिक अनन्तगुणा हैं (सकाइयाँ विसेसाहिया) सकायिक विशेषाधिक हैं।' '' (एएसि णं संते !) हे भगवन् ! इन (सकाइयाणं पुढविकाझ्याणं आउकाइयाणं तेउकाइयाणं वाउकाइयाणं वणस्लइकाइयाणं तसकाइयाणं अपजत्तगाणं) सकायिक, पृथिवीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक, सकायिक और अकायिक जीवों के अपर्याप्नों में से (कपरे कयरेहितो) कौन किससे (अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ?) अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (सव्वत्थोवा तसकाइया अपजत्तगा) त्रसकायिक अपर्याप्त सब से कम हैं (तेउकाइया अपज्जत्तगा असंखेनगुणा) तेजस्कायिक अपर्याप्त असंख्यातगुणा हैं (पुढविकाइया अपजत्तंगा विसेसाहिया) पृथिवीकायिक अपर्याप्त विशेषाधिक हैं (आउकाइया अपजत्तगा विसेसाहिया) अप्कायिक अपर्याप्त विशेषा धिक हैं (वाउंकाइयां अपजत्तगा विसेलाहिया) वायुकाथिक अपर्याप्त अणंतगुणा) PAयि अर्थात् सिद्ध मनत गुरछे (वणस्सइकाइया अणंतगुणा) वनस्पतिय- मन त छे (सकाइया विसेसांहिया) सयि विशेषाधि छ. ___(एएसिणं भंते । ) मावन् । २मा (सकाइयाणं, पुढविकाइयाण, तेउकाइयाण वाउकाइयाणं, वणस्सइकाइयाणं, तसकाइयाणं, अपज्जत्ताणं) सायि४, पृथ्वी यि, જળકાયિક, તેજસકાયિક, વાયુકાયિક, વનસ્પતિકાયિક, ત્રસકાયિક, અને અકાયિક वाना अपातमाथी (कयरे कयरेहितो) युनायी (अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा) ८५, धा, तुक्ष्य २०१२ विशेषाधि४ छ ? (गोयमा) उ गौतम (सव्यत्योवा तसकाइया अपज्जत्तगा) सायि४ २५५यात पाथी माछा छ (तेउकोइया अपज्जत्तगा असंखेज्ज गुणा) ते४२४ायि४ २५५यात मसभ्यात गु छ (पुढविकाइया अपज्जत्तगा विसेसाहिया)' पृथ्वीयि अपर्याप्त विशेषाधि छ (आउकाइया अपज्जत्तगा विसेसाहिया) ४४यि अपर्याप्त विशेपाधि छ (बाउकाइया आजतगविसेसाहिया) वायुयि अपर्याप्त विशेषाधि छ
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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