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प्रमैयबोधिनी टीका पद ५ सू.१४ द्विप्रदेशिकपुद्गलपर्यायनिरूपणम् कानां पृच्छा, गौतम ! यथा जघन्यावगाहनको द्विरदेशिकस्तथा जवन्यावगाहनकश्चतः प्रदेशिकः एवं यथा उत्कृष्टावगाहनको द्विप्रदेशिकस्तथा उत्कृष्टावगाहनकश्चतुः प्रदेशिकोऽपि, एवम्-अजघन्यानुत्कृष्टावगाहनकोऽपि चतुःप्रदगिकः, नवरम् अवगाहनार्थतया स्याहीनः, स्यात् तुल्यः, स्यादभ्यधिकः, यदा हीनः प्रदेश हीनः, अथाभ्यधिकः प्रदेशाभ्यधिकः, एवं यावद् दशप्रदेशिको ज्ञातव्यः, नवरम् उत्कृष्ट अवगाहना वाला त्रिप्रदेशी (एवं अजहण्णमणुक्कोसोगााहणए वि) इसी प्रकार मध्यम अवगाहना वाला भी __ (जहण्णोगाहणयाणं भते! चउपसियाणं पुच्छा?) हे भगवन् ! जघन्य अवगाहना वाले चौप्रदेशी के पर्यायों के विषय में प्रश्न ? (गोयमा ! जहा जहण्णोगाहणए दुपएसिए तहा चउप्पएसिए) हे गौतम ! जैसे जघन्य अवगाहना वाला द्विप्रदेशी उसी प्रकार चतुःप्रदेशी (एवं जहा उकोसोगाहणए दुपएलिए तहा उकोसोगाहणए चउप्पएसिए वि) इस प्रकार जैसा उत्कृष्ट अवगाहना वाला द्विप्रदेशी वैसा उत्कृष्ट अवगाहना वाला चतुःप्रदेशी (एवं अजहण्णमणुक्कोसोगाहणए वि च उप्पएसिए) इसी प्रकार मध्यम अवगाहना वाला चौप्रदेशी भी( नवरं ओगाहणट्टयाए सिय हीणे सिय तुल्ले सिय अमहिए) विशेष यह कि अवगाहना से कदाचित् हीन, कदाचित् तुल्य और कदाचित् अधिक होता है (जइ होणे पएसहीणे) यदि हीन हो तो प्रदेशहीन (अह अन्भहिए पएसअन्भहिए) अगर अधिक हो तो प्रदेशाधिक (एवं जाव दसपएसिए णेयव्यं) इस प्रकार यावत् दशप्रदेशी समझना चाहिए गाना निदेशी (एवं अजहण्णमणुकोसोगोहणए वि) मे शत मध्यम અવગાહના વાળા પણ
(जहण्णोगाहणयाणं भंते ! चउपएसिवाणं पुच्छा) 3 मजयन् । ४३न्य मपमानावा या२ प्रशीना पर्यायना विषयमा प्रश्न ? (गोचमा ! जहा जहण्णोगाहणए दुपएसिए तहा चउपएसिए) हे गौतम ! म धन्य पगा
नापा विदेशी से शत यतु:शी (एवं जहा उकोसोगाणा चउपाए. सिए वि) से शत भ ve Aq6नावामा विदेशी तेभ ट मपगाना व यतुःप्रदेशी (एवं अजहण्णमणुकोसोगाहणए वि चउपामिए) में शते मध्यम अवाना या२ अशी ५५] (नवरं ओगाहट्टयाए मिय हीणे सिय तुल्ले सिय अन्भहिए) विशेष ये गानाथी साथिहीन, हाशित तुल्य भने ४ायित् अधि४ थाय छे (जइ होणे परसहीणे) नहीन सय तो प्रदेश डीन (अह अन्भहिए पएस अन्भहिए) मर गपि तो प्रदेशाधि: (पर