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________________ प्रमैयबोधिनी टीका पद ५ सू.१३ परमाणु पुद्गलपर्यायनिरूपणम् ८९७ स्वस्थाने पट्स्थानपतितः एवं यथा कृष्णवर्णस्य वक्तव्यता भणिता तथा शेषाणामपि वर्णगन्धरसस्पर्शानां वक्तव्यता भणितव्या, यावद् अनन्तगुणः रुक्षः । ____टीका-अय क्रमानुसारेण परमाणु पुद्गलादीनां पर्यायान प्ररूपयितुं प्रथम सामान्यन परमाणुपुद्गलादयः प्ररूपणीयाः, तदनन्तरंत एव परमाणु पुद्गलादय एक प्रदेशाधवगाहाः प्ररूपणीयाः तदनन्तरं तएव परमाणुपुद्गला एक प्रदेशाधवगाहाः प्ररूपणीयाः, तदनन्तरम् त एव एकसमयादिस्थितिकाः तत एक गुणकालकादयः, तदनन्तरं जघन्यायवगाहनाप्रकारेण, ततो जघन्य स्थित्यादिना, तदनन्तरं जघन्यगुणकालकादिप्रकारेण, ततो जघन्य प्रदेशादि चउहाणवडिए) विशेष यह कि स्वस्थान में चतुःस्थानपतित है (एवं अणंतगुणकालए वि) इसी प्रकार अनन्तगुण काला भी (नवरं सहाणे छटाणवडिए) विशेष यह कि स्वस्थान में षस्थानपतित है (एवं जहा कालवण्णस्स वत्तव्वया भणिया) जिस प्रकार काले वर्ण की वक्तव्यता कही (तहा सेसाणवि) उसी प्रकार शेष भी (वण्णगंधरसफासाणं वत्तव्यया भाणियधा) वर्णों गधों रसों, स्पा की वक्तव्यता कहनी चाहिए (जाव अणंतगुणलक्खे) यावत् अनन्तगुण रूक्ष टीकार्थ-~-अब क्रमानुसार परमाणुपुद्गल आदि की प्ररूपणा करनी चाहिए तदनुसार सर्वप्रथम सामान्य परमाणुपुदगल आदि की प्ररूपणा की जाएगी। तत्पश्चात् उन्हीं आकाश के एकप्रदेशादि में अबगाढ परमाणुपुद्गल आदि की, फिर एक समय आदि की स्थिति वाले परमाणु आदि की, तदनन्तर एकगुण काले आदि की जघन्य अवगाहना को लेकर, फिर जघन्य आदि स्थिति की दृष्टि से. फिर जघन्यगुण कृष्ण आदि रूप में फिर जघन्यप्रदेश आदि की वि) मे १ ते अनन्त गुण ॥ पर (नवरं सदाणे छद्राणवडिए) विशेष मे २१२थानमा षट्स्थान पतित छे (एवं जहा कालवण्णास वत्तव्यया भणिया) से शत रेवी पनी यस्तव्यता ४ (नहा सेसाण वि) तेवी शत शेष ५ (वण्णगंधरसफासाणं वत्तव्यया भाणियबा) पी, गधा, रसो भने पनी पत्रव्यता ४ी मध्ये (जाव अणंत गुण लुक्खे) यावत् अनन्त ગુણ રૂક્ષ ટીકાથ–હવે કમાનુસાર પરમાણુ પુદ્ગલ આદિની પ્રક્ષણ કરવી જોઈએ તદનુસાર સર્વ પ્રથમ સામાન્ય પરમગુ પુદગલ આદિની પ્રરૂપણ કરાશે. તત્પશ્ચાત્ એ જ આકાશના એક પ્રદેશાદિમાં અવગાઢ પરમાણુ પુદ્ગલ આદિની પછી એક સમય આદિની સ્થિતિવાળા પરમાણુ આદિની તદનન્તર એક ગુણ કાળા આદિની, ત્યાર પછી જઘન્ય આદિ અવગાહનાઓને લઈને કરી જઘન્ય
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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