________________
७९४
प्रशापनासूत्रे असंख्येयप्रदेशावगाढः पुद्गलः असंख्येयप्रदेशावगाढस्य पुद्गलस्य द्रव्यार्थतया तुल्यः प्रदेशार्थतया षस्थानपतितः, अवगाहनार्थतया चतुः स्थानपतितः, स्थित्या चतुः स्थानपतितः, वर्णादिभिरष्टस्पर्शः पदस्थानपतितः एकसमयस्थितिकानां पृच्छा, गौतम ! अनन्ता पर्यवाः प्रज्ञप्ताः, तत् केार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते -एकसमयस्थितिकानामनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! एकसमयस्थितिकः पुदगलः एकसमयस्थितिकस्य पुद्गलस्य द्रव्यातया तुल्यः, प्रदेशार्थतया पट्अनन्त पर्याय हैं (गोयमा ! असंखेज्जपएसोगाढे पोगाले असंखेज्जपएसोगाढस्स पोग्गलस्ल वट्टयाए तुल्ले) हे गौतम ! असंख्यात प्रदेशों में अवगाढ पुद्गल दुसरे असंख्यात प्रदेशों में अवगाढ पुद्गल से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है (पएसट्टयाए) प्रदेशों की अपेक्षा से (छट्ठाणवडिए) षट्स्थानपतित है (ओगाहणट्टयाए चउट्ठाणवडिए) अवगाहना की अपेक्षा से चतुस्थानपतित है (ठईए चउट्ठाणवडिया) स्थिति से चतुः स्थानपतित है (वण्णाइअटफासेहिं छहाणवडिए) वर्णादि से तथा आठ स्पर्शो से षट्रस्थानपतित है।
(एगसमयठिइयाणं पुच्छा !) एक समय की स्थिति वालों की पृच्छा? (गोयमा ! अर्णता पज्जवा पण्णत्ता) हे गौतम ! अनन्त पर्याय कहे हैं (से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चइ-एगसमयठिइयाणं अणंता पजवा पण्णत्ता?) हे भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि एक समय की स्थिति वालों के अनन्त पर्याय है ? (गोयमा। एगसमय ठिइए पोग्गले एगस. मयठिइयस्स पोग्गलस्ल दवट्टयाए तुल्ले) हे गौतम ! एक समय की गाढे पोग्गले असंखिज्जपएसोगाढस्स पोगलस्म व्वट्ठयाए तुल्ले) गौतम । અસંખ્યાત પ્રદેશમાં અવગાઢ પુગલ બીજા અસંખ્યાત પ્રદેશમાં અવગાઢ युगसथी द्रव्यनी अपेक्षा तुक्ष्य छ (पएसट्टयाए) प्रशानी अपेक्षा (छट्ठाण वडिए) ५८स्थान पतित छ (ओगाहणद्वयाए चउढाणवडिए) 244॥ नानी अपेक्षा यतुःस्थान पतित छे (वण्णाइ अटफासेहिं छहाणवडिए) पद तथा मा સ્પર્શથી ષટસ્થાન પતિત છે
(एगसमयठिइयाणं पुच्छा ?) मे समयनी स्थितिनी छ। १ (गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता) गौतम ! मनन्त पर्याय ४ा छ (से केणट्रेणं भंते ! एवं वुच्चइ एगसमयठिइयाणं अणता पज्जवा पण्णत्ता ?) समपन्! ॥ ४॥२ स ४वाय छे , मे समयनी स्थितिमान मनन्त पर्याय छ ? (गोयमा ! एगसमयठिईए पोग्गले एगसमयठिइयस्स पोग्गलस्स दबढयाए तुल्ले) गौतम ! એક સમયની સ્થિતિવાળા પુદ્ગલ બીજા એક સમયની સ્થિતિવાળા પુદ્ગલથો