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________________ ७७६ प्रज्ञापनासूचे प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-स्कन्धाः स्कन्धदेशाः स्कन्धप्रदेशाः परमाणु पुद्गलाः ते खल भदन्त ! किं संख्येयाः, असंख्येयाः, अनन्ताः ? गौतम ! नो संख्येया, नो असंख्येयाः अनन्ताः, तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते-नो संग्व्येयाः नो असख्येयाः, अनन्ताः, ? गौतम ! अनन्ताः परमाणु पुद्गलाः, अनन्ताः द्विप्रदेशिकाः स्कन्धाः यावत्-अनन्ताः दश प्रदेशिकाः स्कन्धाः, अनन्ताः संख्येय प्रदेशिकाः स्कन्धा, अनन्ताः असंख्येयप्रदेशिकाः स्कन्धाः अनन्ताः अनन्तप्रदेपण्णत्ता) हे गौतम ! चार प्रकार के कहे हैं (तं जहा) वे इस प्रकार (खधा) स्कट (खंधदेसा) स्कंधदेश (ग्बंधपएसा) स्कंधप्रदेश (परमाणुपुग्गला) परमाणुपुद्गल (ते णं भते !) हे भगवन् ! (किं संखेज्जा - असंखेज्जा अणता ?) वे क्या ख्यात, असंख्यात या अनन्त हैं ? (गोयमा ! नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अणंता) हे गौतम ! वे संख्यात नहीं, असंख्यात नहीं, अनन्त हैं। (से केणंट्टणं संते ! एवं उच्चइ-लो संखेज्जा नो असंखेज्जा, अणंता) हे भगवन् ! किसकारण ऐसा कहा कि वे संख्यात नहीं, असंख्यात नहीं अनन्त हैं (गोयमा ! अणंता परमाणुपुग्गला) हे गौतम ! परमाणुपुद्गल 'अनन्त हैं (अणंता दुपएसिया खंधा) द्विप्रदेशी स्कंध अनन्त हैं (जाव) यावत (अणंता दसपएसिया खंधा) अनन्त दम प्रदेशी स्कंध हैं (अणता संखेज्जपपलिया खंधा) अनन्त संख्यातप्रदेशी स्कंध हैं (अणंता असखिज्जपएसिया बंधा) अनन्त असंख्यातप्रदेशी स्कंध हैं (अणंता अणंतपएसिया खंधा) अनन्त अनन्तप्रदेशी प्रा२ना द्या छ (तं जहा) ते २॥ प्रा२ (खंधा) २४५ (संधदेसा) १५ देश (खधपएसा) २४३ प्रदेश (परमाणुपुग्गला) ५२मा पुगी (तेणं भंते ।) मगवन् । तसा (किं संखेज्जा असंखेज्जा अणता ?) शुन्यात, असभ्यात ५२ अनन्त छ ? (गोयमा | नो सखेज्जा नो असंखेज्जा, अणता) गौतम । સંખ્યાત અગર અસંખ્યાત નથી પણ અનંત છે (से केणट्रणं भते । एव वच्चइ-नो सखेज्जा, नो असखेज्जा, अणता) सावन् ! શા કારણે એવું કહ્યું છે કે સંખ્યાત કે અસંખ્યાત નથી પણ અનન્ત છે. (गोयमा । अणता परमाणुपुग्गला) र गौतम । ५२मा पुनः अनन्त छ (अणता दुपएसिया खंधा) द्वीप्रदेश ४ मनन्त छ (जाब) यावत् (अणता दस पसिया खधा) मनन्त श अशी २४५ छ (अर्णता संखेज्जपएसियां खया) मनन्त यात प्रदेशी २४५ छ (अणंता संखेजपएसिया खंधा) मस ध्येय प्रदेशी २४५ मत छ. (अणता अर्णतपएसिया खंधा) मनन्त अशी
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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