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________________ प्रज्ञापनासूत्रे ७४८ - दर्शनाभ्याम् पदस्थानपतितः, एवमुत्कृष्टाभिनिवोधिकज्ञानी अपि, नवरम्आभिनिबोधिकज्ञानपर्यवैः तुल्यः स्थित्या त्रिस्थानपतितः, त्रिभिर्ज्ञानैः, त्रिभि -दर्शनैः, षट्स्थानपतितः, अजघन्यानुत्कृष्टाभिनिवोधिकज्ञानी यथा उत्कृष्टाभिनिवोधिकज्ञानी, नवरं स्थित्या चतुःस्थानपतितः, स्वस्थाने पट्स्थानपतितः, एवं श्रुतज्ञानी अपि जघन्यावधिज्ञानिनां भदन्त ! मनुष्याणां कियन्तः, पर्यवाः ज्ञान के पर्यायों से तुल्य (सुयनाणपज्जवेहिं ) श्रुतज्ञान के पर्यायों से (दोहिं दंसणेहि) दो दर्शनों से (छट्टाणवडिए) पहूस्थानपतित ( एवं उक्कोसाभिणिवोहिकनाणी वि) इसी प्रकार उत्कृष्ट अभिनिघोधिकज्ञानी भी (नवरं) विशेष (आभिणिवोहियनाणपज्जवेहिं तुल्ले) अभिनिवोधिकज्ञान के पर्यायों से तुल्य (टिईए तिट्ठाणवडिए) स्थिति 'से त्रिस्थानपतित (तिहिं नाणेहिं) तीन ज्ञानों से (तिहिं दंसणेहिं) तीन दर्शनों से ( छाणवडिए) पस्थानपतित (अजहणमणुक्कोसाभिणिबोहियनाणी जहा उनकोसाभिणिवोहियनाणी) मध्यम आभिनिबोधिक ज्ञानी जैसे उत्कृष्ट अभिनिबोधिक ज्ञानी (नवरं) विशेष (ठिईए चाणवडिए) स्थिति से चतुःस्थानपतित (सहाणे छट्ठाणवडिए) स्वस्थान में षट्स्थानपतित ( एवं सुयणाणी वि) इसी प्रकार श्रुतज्ञानी भी ( जहणोहिनाणीणं भंते ! मगुस्साणं केवढ्या पज्जवा पण्णत्ता) जघन्य अवधिज्ञानी मनुष्यों के हे भगवन् । कितने पर्याय कहे हैं ? ( गोयमा ! अनंता पज्जवा पण्णत्ता) हे गौतम ! अनन्त पर्याय कहे 1 षटस्थान पतित (एवं उक्कोसाभिणिबोहियनाणी वि) मेन प्रहारे उत्सृष्ट सालिनिमोधिठज्ञानी थए। (नवर ) विशेष (आभिणिवोहियनाणपज्जवेहि तुल्ले) मालिनिमोधिठज्ञानना पर्यायाथी तुझ्य (टिईए तिट्ठाणवडिए) स्थितिथी त्रिस्थान पतित (तिहि नाणेहि') त्रषु ज्ञानाथी (तिहि दंसणेर्हि) ऋणु दर्शनाथी (छट्टाणवडिए) - स्थान पतित (अजहण्णमणुक्को साभिणिवोहियनाणी जहा उक्कोसाभिणिवोहियनाणी) भध्यम मलिनियोधि ज्ञानी नेवा उत्सृष्ट मालिनिमोधि ज्ञानी (नवरं ) विशेष (ठिईए चउट्ठाणवडिए) स्थितिथी यतुःस्थान पतित (सट्टाणे छट्टाणवडिए) स्वस्थानभां षटस्थान पतित ( एवं सुयणाणी वि) से प्रहारे श्रुतज्ञानी पशु ( जहण्णोहिनाणीणं भंते ! मणुस्साणं केवइया पज्जवा पण्णत्ता ? ) ४धन्य अवधिज्ञानी मनुष्योना हे भगवन् ! डेंटला पर्याय उद्या छे ? ( गोयमा ? अनंता पज्जवा पण्णत्ता ?) हे गौतम! अनन्त पर्याय उद्या छे (से केणट्टेणं भंते! एव'
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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