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प्रशापनासूत्र स्थित्या चतुःस्थानपतितः, कृष्णवर्णपर्यवैस्तुल्यः, अवशेषैः वर्णगन्धरसरपर्शपर्यवैः षट्स्थानपतितः, चतुर्भिमा॑नः षट्स्थानपतितः, केवलज्ञानपर्यवैल्तुल्यः, त्रिभिरज्ञानः पट्स्थानपतितः, केवलदर्शनपर्यवैस्तुल्यः, एवमुन्कृप्टगुणकालकोऽपि, अजघन्यानुत्कृष्टगुणकालकोऽपि एवञ्चैव नवरं स्वस्थाने पट्रस्थानपतितः, एवं पञ्चवर्णाः, द्वौ गन्धौ, पश्चरसाः, अष्टौ स्पर्शाः भणितव्याः, जवन्याभिनिवोधिकहाणवडिए) अवगाहना से चतुःस्थानपतित (ठिईए चउट्ठाणबडिए) स्थिति से चतुःस्थानपतित (कालवण्णएजवेहिं तुल्ले) कृष्ण वर्ण के पर्यायों से तुल्य (अबसे सेहि वणगंधरसफासेहिं छाणवडिए) शेष वर्ण गंध, रल और स्पर्श से षट्स्थानपतिल (चाहिं नाणेहिं छहाणवडिए) चार ज्ञानों से षट्स्थानपतित (केवलनाणपज्जवेहिं तुल्ले) केवल ज्ञान के पर्यायों से तुल्य (तिहिं अन्लाणेहि तिहिं दसणेहिं छहाणवडिए) तीन अज्ञानों से तीन दर्शनों से षट्स्थानपतित (केबलदसणपज्जवेहि तुल्ले) केवलदर्शन के पर्यायों से तुल्य - (एवं उक्कोसगुणकालए वि) इसी प्रकार उत्कृष्टगुण कृष्ण भी (अजहण्णमणुक्कोसगुणकालए वि एवं चेव) मध्यमगुण कृष्ण भी इसी प्रकार (नवर सट्ठाणे छट्टाणवडिए) विशेषता यह कि स्वस्थान में भी षटूस्थानपतित है (एव पंचवण्णा) पांचों वर्ण (दो गंधा) दोनो गंध (पंच रसा) पांचों रस (अट्टफासा) आठ स्पर्श (माणियव्वा) कहने चाहिए __(जहण्णाभिणियोहियनाणीणं मणुरलाणं केवइया पज्जवा प(पएसटयाए तुल्ले) प्रदेशथी तुल्य (ओगाहट्ठयांए चउढाणवडिए) म नाथी यतुःस्थान पतित (ठिईए चउठाणवडिए) स्थितिथी यतुस्थान पतित (कालवण्णपज्जहिं तुल्ले) by q ना पर्यायाथी तुल्य (अवसेसेहिं वण्णगंधरसफासेहि छट्ठाणवडिए) शेष १ ग २४ मने २५शथी षट्स्थान पतित (चउहि नाणेहि छदाणवडिए) यार ज्ञानाथी पटस्थान पतित छ (केवलनाणपज्जवेहि तुल्ले) वणज्ञानना पर्यायाथी तुस्य (तिहि अन्नाणेहि तिहिं दसणेहिं छटाणवडिए) ऋण मज्ञाना, मन प शनाथी ५८स्थान पतित छे (क्वलदसणपज्जवेहिं तुल्ले) કેવળ દર્શનના પર્યાથી તુલ્ય . (एवं उक्कोसगुणकालए वि) मे रे कृष्ट गुण ! ५Y (अजहण्णमणुकोसगुणकालए वि एवं चेव) ये रीते मध्यम गु] [ ५५Y (नवरं सहाणे छटाणवडिए) विशेषता मे है स्वस्थानमा ५५ षटस्थान पतित छ - (एवं पंच वन्ना) पांये (दो गंधा) भन्ने धे। (पंचरसा) पांय २से। (अट्ठफासा) माठे २५श (भाणियब्वा) ४ा ध्ये