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________________ ७१२ प्रज्ञापनासो प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! जघन्यावगाहनकः पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिको जघन्यावगाहनफस्य पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकस्य द्रव्यार्थतया तुल्यः, प्रदेशार्थतया तुल्यः, अवगाहनार्थतया तुल्यः, स्थित्या त्रिस्थानपतितः, वर्णगन्धरसस्पर्शपर्यवैः, द्वाभ्यां ज्ञानाभ्याम् द्वाभ्याम् अज्ञानाभ्याम् , द्वाभ्यां दर्शनाभ्यां पट्स्थानपतितः, उत्कृष्टावगाहनकोऽपि एवञ्चव, नवरं त्रिमिानैः, त्रिभिः अज्ञानैः षट्स्थानपतितः, यथा उत्कृष्टावगाहनकस्तथा अजघन्यानुत्कृष्टावगाहनकोऽपि, नवरम् हे भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि पंचेन्द्रिय तिर्यंचों के अनन्त पर्याय हैं ? (गोयमा ! जहण्णोगाहणए पंचिंदियतिरिक्खजो. णिए जहण्णोगाहणयस पंचिंदियतिरिक्खजोणियस्स) जघन्य अवगाहना वाला पंचेन्द्रिय तिर्यंच जघन्य अवगाहना वाले पंचेन्द्रिय तिर्यच से(दव्वट्ठयाए तुल्ले) द्रव्य से तुल्य है (पएसट्टयाएं तुल्ले) प्रदेशों से तुल्य है (ओगाहणट्टयाए तुल्ले) अवगाहना से तुल्य है (ठिईए तिट्ठाणवडिए) स्थिति से त्रिस्थानपतित है (वण्ण गंध रस फासपज्जवेहि) वर्ण, गंध, रस स्पर्श के पर्यायों से (दोहिं नाणेहिं) दो ज्ञानों से (दोहिं अन्नाणेहिँ) दो अज्ञानो से (दोहिं दसणेहिं) दो दर्शनों से (छट्ठाणवडिए) षट्स्थानपतित है ___ (उक्कोसोगाहणए वि एवं चेव) उत्कृष्ट अवगाहना वाला भी इसी प्रकार (नवरं) विशेष (तिहिं नाणेहिं तिहिं अण्णाणेहिं तिहिं दसणेहिं छठ्ठाणवडिए) तीन ज्ञानों से तीन अज्ञान तीन दर्शन से से षट्स्थानपतित है । (गोयमा । जहण्णागाहणए पंचिंदियतिारक्खजोणिए जह्मणोगाहणयस्स पंचिंदियतिरिक्ख जोणियस्स) धन्य मानावा पयन्द्रिय तिय य धन्य मानावाणा ५येन्द्रिय तिय यथी (दव्यद्वयाए तुल्ले) द्रव्यथी तुल्य छ (पएसट्टयाए तुल्ले) प्रशाथी तुल्य छ (ओगाहणद्वयाए तुल्ले) स नाथी तुल्य छ (ठिईए तिठाण वडिए) स्थितिथी त्रिस्थान पतित छ (वण्ण-गंध-रस, फास पज्जवेहिं) पY 14 २०-२५शन पर्यायाथी (दोहिं णाणेहिं) मे ज्ञानाथी (दोहिंअन्नाणेहिं) मे. अज्ञानाथी (दोहि सणेहिं) मे. शिनाथी (छठाण वडिए) ५८स्थान पतित छ. (उकोसोगाहणए वि एवं चेव) कृष्ट माना ५] 2. प्रारे (नवरं) विशेष (तिहिं णाणे हिं, तिहिं अण्णाणेहिं तिहिं दसणेहिं छट्ठाण वडिए) त्र ज्ञानाथी ત્રણ અજ્ઞાનથી, ત્રણ દર્શનેથી સ્થાન પતિત છે.
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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