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________________ प्रमेयवोधिनी टीका पद ५ सू०६ नैरयिकणां पर्यायनिरूपणम् ६२३ द्रव्यार्थतया तुल्यः, प्रदेशार्थतया तुल्यः अवगाहनार्थतया स्याद्धिनः, स्यात्तुल्यः, स्यारभ्यापिका, यदा होनोऽसंस्थेयभागढीनो बा, संस्येयभागहीनो वा, संख्येयगुणहीनों दा, अभ्यिधिकोऽसंख्येयभागाभ्यधिको वा, संख्येमागाभ्यधिको वा, संख्येयगुणाभ्यधिको वा, असंख्येयगुणाभ्यधिको वा, स्थित्या स्याद्धीनः स्यात्तुल्यः स्यादभ्यधिकः यदा हीनोऽसंख्येयभागहीनो चा, संख्येयवालो नारक मध्यम अवगाहना वाले अन्य नारक से द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है (पएसध्याए तुल्ले) प्रदेशों की अपेक्षा तुल्य है (ओगाहण?याए सिय हीणे, सिय तुल्ले, सिय अभहिए) अवगाहना की अपेक्षा स्यात् हीन, स्यात् तुल्य, स्यात् अधिक होता है (जइ हीणे असंखिज्जाभाग हीणे वा संखिज्जभाग होणे वा संखिज्जगुण हीणे वा असंखिज्जगुणहीणे वा) अगर हीन है तो असंख्यातभाग हीन, संख्यातभाग हीन, संख्यातगुण हीन या असंख्यानगुण हीन होता है (अह अन्भहिए असंखिजभागमभहिए वा संखिजभागमभहिए वा संखिगुणमन्भहिए वा असंखिजगुणमाहिए वा) अगर अधिक है तो असं. ख्यातभाग अधिक, संख्यातभाग अधिक, संख्यातगुण अधिक, असंख्यातगुण अधिक होता है। (ठिईए लिय हीणे, सिय तुल्ले, सिय अभहिए) स्थिति से स्यात् हीन, स्यात् तुल्य, स्यात् अधिक है (जइ हीणे) यदि हीन है (असंखिज्जागहीणे या, संखिज्जभागहीणे वा, संखिजगुणहीणे वा, असंखिज्जगुणहीणे वा) असंख्यातभाग हीन, संख्यातभाग हीन, छे. (पण्सट्टयाए तुल्ले) प्रशानी अपेक्षा तुल्य छ (ओगाहणट्ठयाए सिए हीणे, सिय तुल्ले, सिय अभहिए) Aqाइनानी अपेक्षाये ये स्यात् हीन, स्यात् तुल्य, स्यात् अधि४ थाय छे (जइ होणे असंखिज्जभाग हीणे वा संखिज्जभागहीणे वा संखिजगुण होणे, वा असंखिजगुणहीणे वा) मगर हीन छ । मध्यातला હીન, સા ખ્યાત ભાગ હીન, સંખ્યાત ગુણહીન અગર અસંખ્યાત ગુણહીન બને छ (अहअन्भहिए असंखिज्जभागमभहिए वा संखिज्जभाग मन्भहिए वा संखिज्जगुणमन्भहिए वा असंखिजगुणमन्भहिए वा) २२ मधि: छे तो मसण्यात ભાગ અધિક, સંખ્યાત ભાગ અધિક, સંખ્યાત ગુણ અધિક, અસંખ્યાત ગુણ मधि४ छे. (ठिईए सिच हीणे, सिय तुरले, सिय अन्भहिए) स्थितिथी स्यात् हीन, स्यात् तुझ्य, स्यात् ५४ (जइ होणे) ने डीन छ (अमंखिज्ज भागहीणे वा, संसिज्जभागहीणे वा, संखिजगुणहीण वा असंखिजगुणहीणे वा) असभ्यात मा
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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