________________
६०६
शापासू
प्रदेशार्थतया तुल्यः, अवगाहनार्थतया चतुःस्थानपतितः, स्थित्या चतुःस्थान पतितो वर्णगन्धरसस्पर्शाभिनिवोधिक ज्ञानश्रुतज्ञानावधिज्ञान मनः पर्यवज्ञान केवलज्ञानपर्य - स्तुल्यस्त्रिभिर्दर्शनैः पदस्थानपतितः, केवलदर्शन पर्यस्तुल्यः, वानव्यन्तरा अवगाहनार्थतया स्थित्या चतुःस्थानपतितः, वर्णादिभिः पदस्थानपतिताः, ज्योतिष्काः वैमानिका अपि एवञ्चैव, नवरं स्थित्या त्रिस्थानपतिताः ।।
गौतम ! (मणूसे मणूस दट्टयाए तुल्ले) मनुष्य मनुष्य से द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है ( पट्टयाए तुल्ले) प्रदेशों से तुल्य है (ओगाहणट्टयाए चउट्ठाणचडिए) अवगाहना से चतुःस्थानपतित है । (ठिईए चाणवडिए स्थिति से चतुःस्थानपतित है। (वण्ण-गंध-रस- फासआभिणियोहियनाण- सुयनाण- ओहिनाण-मणपज्जवनाण- पज्जवेहिं (छट्ठाणवडिए) वर्ण, गंध, रस, स्पर्श, आभिनिवोधिकज्ञान, श्रुनज्ञान, अवधिज्ञान, मनः पर्यवज्ञान के पर्यायों से पस्थानपतित है (केवलणाणपज्जवेहिं तुल्ले) केवलज्ञान के पर्यायों से तुल्य है (तिहिं अण्णाणेहिं तिहिं दंसणेहिं छट्टाणवडिए) तीन अज्ञान तीन दर्शनों से षट्स्थानपतित है ( केवलदंसण पज्जवेहिं तुल्ले) केवलदर्शन के पर्यायों से तुल्य है ।
( वाणमंतरा ओगाहणट्टयाए ठिईए चउट्ठाणवडिया) वानव्यन्तर देव अवगाहना और स्थिति से चतुःस्थानपतित हैं (बण्णाइहिं छट्टानवडिया) वर्ण आदि के पर्यायों से षट्स्थानपतित हैं (जोइसिया वेमाणिया वि एवं चेव) ज्योतिष्क, वैज्ञानिक भी इसी प्रकार (नवरं
गौतम ! (मणूसे मणूसस्स दव्त्रटुयाए तुल्ले) मनुष्य मनुष्यथी द्रव्यनी अपेक्षाये तुझ्यछे (पसट्टयाए तुल्ले) प्रदेशोथा तुल्य छे, (ओगाहणट्टयाए चाणवडिए ) - गाडनाथी यतु.स्थान पतित छे (ठिइए चउट्टाणवडिए) स्थितिथी यतु.स्थान पतित छे (वण्णगंधरसफास आभिणिबोहियनाण सुयणाण ओहिनाण मणपज्जवनाणपज्ज • छट्टाणवडिए) वर्षा गध रस, स्पर्श, मालिनिमोधिज्ञान श्रुतज्ञान, अव[धिज्ञान, भनःपर्यवज्ञानना पर्यायाथी षट्स्थान पतित छे (केवलणाणपज्जवेहि तुल्ले) ठेवणज्ञानना पर्यायाथी तुल्य छे (तिहि अण्णाणेहि छट्टाणवडिए) ए| अज्ञान त्रयु दर्शनथी षट्स्थान पतित छे (केवल सणपज्जवेहि तुल्ले) ठेवण दर्शनना પર્યાચાથી તુલ્ય છે
( वाणमंतरा ओगाणटुचाए ठिईए चउडाणवडिया) वानव्यन्तर द्वेव भवगाना अने स्थितिथी यतुःस्थान पतित छे (वण्णाइहि छट्टाणवडिया ) वर्षा माहिना पर्यायाथी छ स्थान पतित है ( जोइसिया वेमाणिया वि एवं चेव) न्योतिष्ड, गते वैभानि च। खेभ प्रारे (नवरं ठिईए तिट्ठाणवडिया) विशेषता मे छे