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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद ५ सू.३ असुरकुमाराणां पर्यायनिरूपणम् छाया-असुरकुमाराणां भदन्त ! कियन्तः पर्यवाः प्रजाताः ? गोतम ! अनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः, तत् दे.नार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते-असुरकुमाराणाम् अनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! असुरकुमारः अनुर मारस्य द्रव्यार्थतया तुल्यः, प्रदेशार्थतया तुल्यः, अवगाहनार्थतया चतु:स्थानपतितः, स्थित्या चतुःस्थानपतितः, कृष्णवर्ण पर्यवैः पट्रस्थानपतितः, एवं नीलवर्णपर्यवैः, लोहितवर्णपर्यवेः हारिद्रवर्णपर्यवैः, शुक्लवर्णपर्यवैः, सुरभिगन्धपर्यवैः, दुरभिगन्धपर्यवेः, तिलरसपर्यवैः, असुरकुमार पर्याय वक्तव्यता शब्दार्थ-(असुरकुमाराणं अंते ! केवथा एज्जका पणत्ता ?) हे भगवन् ! असुरकुमारों के कितने पर्याय कहे हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (अणंता पजवा पण्णत्ता) अनन्त पर्याय कहे हैं (से केणढे णं भंते ! एवं वुच्चइ) किस हेतु से हे भगवन् ! ऐसा कहा जाता है कि (असुरकुमाराणं अणेता पज्जवा) असुरकुमारों के अनन्त पर्याय हैं (गोचमा) हे गौतम ! (असुरकुमारे असुरकुमारस्ल) एक असुर अलार दूसरे असुरकुमार से (व्वट्टयाए तुल्ले, पएलट्टयाए तुल्ले) द्रव्य की .पेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से तुल्य है (ओगाहणयाए चाणवडिए) अवगाहना की अपेक्षा चतुः स्थानपतित है (ठिईए चउट्ठाणवडिए) स्थिति से चतुःस्थानपतित है (कालवण्ण पज्जवेहिं छहाणवडिए) कृष्णवर्ण पर्यायों से षट्स्थानपतित है (एवं) इसी प्रकार (नीलवण्ण पनवेहि, लोहियवण्णपज्जवेहिं, हालिद्दवण्णपज्जवेहि, सुश्किल्लवण्ण पज्जवेहि) नीलवर्ण पर्यायों से, लोहित, हारिद्र, और शुक्लवर्ण के અસુરકુમાર પર્યાય વક્તવ્યતા Awar-(असुरकुमाराण भंते ! केवइया पनवा पण्णत्ता ?) गवन् ! मसुरेभाना सा पर्याय ४ा छ ? (गोयमा ) 3 गौतम । (अणना पन्नवा पण्णत्ता) अनन्त पर्याय ४ह्या छ. मावन् । ४या स्तुथी सेम डेयाय छ है (असुरकुमाराणं अणता पज्जयो) असुमाराना मनन्त पर्याय छ जीतम ! (असुरकुमारे असुरकुमारस्स) 23 मसु२छुमार गीत मसु२७मारथी (दयट्टयाए तुल्ले पएसट्टयाए तुल्ले) द्रव्यनी अपेक्षा तुक्ष्य छ भने प्रदेशानी अपेक्षा पY तुल्य छे. (ओगहणट्टयाए चउटाणवडिग) २५गाडनानी अपेक्षा यतु स्थान पतित छ (ठिईए चट्टाणवडिए) स्थितिथी चतु:स्थाना पतित छे (कालवण्णपजवेहि छटाणवडिए) ४० पर्यायाथी पट्थान पतित छ (ब) येन (नीलवण्णपज्जवेहिं लोहियवण्णपज्जवेहि हालिवणपज्जवेहि सुकिल्लपणपन्जति) नीत ना पर्यायथी, सोडित, विद्र, अने शुसपना पर्यायाधी (सुन्निगंध
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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