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प्रज्ञापनासूत्रे कालं ठिई पण्णता ?) सर्वार्थसिद्ध चियान के पर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल की कही है ? (गोयमा ! अजहण्णमणुकोसं तेजीसं सागरोवमाई अंतोमुहत्तणाई) हे गौतम ! जघन्य-उत्कृष्ट भेद से रहित अन्तर्मुहर्त कम तेतीस सागरोपण की (ठिई) स्थिति (पण्णत्ता) कही है । ॥१०॥ टीकार्थ-व्याख्या स्पष्ट है ॥१०॥ श्री जैनचार्य जैनधर्मदिवाकर पूज्यश्री घासीलाल बतिविरचित प्रज्ञापना सूत्र की प्रमेयबोधिनि व्याख्या में
॥चौथा स्थान पद समाप्त ॥ विद्ध देवाणं पज्जत्तयाणं केवइय काल ठिई पण्णत्ता ?) साथ सिद्ध विमानना पर्यास हेवानी स्थिति सा णनी ४ी छ ? (गोयमा अजण्णमणुकोस तेत्तीस सागरोवमाई अंतोमुत्तणाई) गौतम | धन्य स ट महथी २डित मन्तभुत माछा तेत्रीस सागरोपमनी (ठिई) स्थिति (पण्णत्ता) ४ही छे. ॥१०॥
ટીકાઈ–વ્યાખ્યા સપષ્ટ છે કે ૧૦ છે શ્રી જૈનાચાર્ય જૈનધર્મદિવાકર પૂજ્ય શ્રી ઘાસીલાલ વ્રતિવિરચિત પ્રજ્ઞાપના
સૂત્રની પ્રમેયોધિની ટીકાનું ચોથું સ્થાનપદ સમાપ્ત