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________________ ४४ ___ प्रशापनासूत्र अष्टदश सागरोपमाणि, उत्कृष्टेन एकोनविंशतिः सागरोपमाणि, अपर्याप्तकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येनापि उत्कृष्टेनापि अन्तर्मुहूर्तम्, पर्याप्तकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन अष्टादशसागरोपमानि अन्तर्मुहूर्तोनानि, उत्कृष्टेन एकोनविंशतिः सागरोपमानि अन्तर्मुहूर्तोनानि, प्राणते कल्पे देवानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन एकोनविंशतिः सागरोपमाणि, उत्कृष्टेन विंशतिः सागरोपमाणि अपर्याप्तकोनां पृच्छा, गौतम ! जघन्येनापि उत्कृष्टेनापि अन्तर्मुहूर्तम्, पर्याप्तकानां सागरोपम की, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम अठारह सागरोपम की। (आणए कप्पे देवाणं पुच्छा ?) आनत कल्प में देवों की स्थिति कितनी ? (गोयमा ! जहण्णेणं अट्ठारस सागरोवमाई, उक्कोसेणं एगूणवीसं सागरोवमाई) हे गौतम ! जघन्य अठारह सागरोपम, उत्कृष्ट उन्नीस सागरोपम की (अपज्जत्तयाणं पुच्छा ?) अपर्याप्तक देवों की स्थिति की पृच्छा ? (गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं) हे गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट भी अन्तमुंहूर्त की (पज्जत्तयाणं पुच्छा ) पर्याप्तक देवों की स्थिति कितनी? (गोयमा ! जहण्णेणं अट्ठारस सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं एगूणवीसं सागरोवमाई अंतोमुहुत्तुणाइ) हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम अठारह सागरोपम, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम उन्नीस सागरोपम की। ___ (पाणए कप्पे देवाणं पुच्छा ?) प्राणत कल्प में देवों की स्थिति कितनी ? (गोयमा ! जहण्णेणं एगूणवीसं सागरोवमाई, उक्कोसेणं અઢાર સાગરોપમની (आणए कप्पे पुच्छा ? ) मानत४६५मा हेवानी स्थिति सी ? (गोयमा ! अद्वारससागदोवमाइं उक्कोसेणं एगूणवीसं सागरोवमाई) गौतम | धन्य २ढार सागरोपम, कृष्ट सोमणीस सायमनी (अपज्जत्तयाण पुच्छा ?) मर्या. स४ हेवानी स्थितिनी २छ। ? (गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं) गौतम । धन्य ५ मन्तभुत, कृष्ट ५ मन्तभुत नी (पज्जत्तयाणं पुच्छा ?) पर्यास हेवानी स्थिति सी ? (गोयमा ! जहण्णेणं अट्ठारससागरो वमाई अ तोमुहुत्तणाई उक्कोसेणं एगूणवीस सागरोवमई अंतोमुहुत्तणाई) गौतम ! જઘન્ય અન્તર્મુહૂર્ત એછા અઢાર સાગરેપમ, ઉત્કૃષ્ટ અન્તમુહૂર્ત ઓછા ઓગણસ સાગરોપમની. (पाणए कप्पे देवाण पुच्छा ?) प्रात ४८५मां नी स्थिति सी ? (गोयमा ! जहण्णेण एगूणवीसं सागरोवमाई, उवकोसेणं वीसं सागरोवमोइ) गौतम!
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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