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प्रमेयबोधिनी टीका पद ४ सू.०८ ज्योतिष्कदेवानां स्थितिनिरूपणम् - ५०३ जघन्येन चतुर्भागपल्योपमम् अन्तर्मुहूर्तोनम्, उत्कृष्टेन पल्योपमम् वर्षसहस्राभ्यधिकम् अन्तर्मुहूर्तोनम्, सूरविमाने खलु भदन्त ! देवीनां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन चतुर्मागपल्योपमम्, उत्कृष्टेन अर्द्धपल्योपमम् पञ्चभिः वर्षशतैरभ्यधिकम्, अपर्याप्तकानां पृच्छा, गौतम ! जयन्येनापि उत्कृष्टेनापि अन्तर्मुहूर्तम्, पर्याप्तकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन चतुर्भागपल्ययोमम् अन्तर्मुहूर्तोनम्, उत्कृष्टेन अर्द्धहे गौतम ! जघन्य पल्योपम का चतुर्थ भाग में अन्तर्मुहूर्त कम और उस्कृष्ट एक पल्योपम और एक हजार वर्ष में अन्तर्मुहूर्त, कम । ' (सूरविमाणेणं भंते ! देवीणं पुच्छा ?) हे भगवन् ! सूर्यविमान में देवियों की स्थिति कितनी ? (गोयमा ! जहण्णेणं चउभागपलिओघमं, उक्कोसेणं अद्ध पलिओवमं पंचहिं वाससएहिमभहिय) हे गौतम ! जघन्य पल्योपम का चोथाई भाग, उत्कृष्ट पांच सौ वर्ष अधिक एक पल्योपम (अपज्जत्तियाणं पुच्छा ?) अपर्याप्तक सूर्य देवियों की स्थिति कितनी ? (गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुत्त) हे गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त की (पजस्तयाणं पुच्छा ?) पर्याप्तक देवियों की पृच्छा ? (गोयमा ! जहण्णेणं (चउभागपलिओषमं भंतोमुहुत्तूणं, उक्कोसेणं अद्वपलिओवमं पंचहिं वाससएहिमन्भहियं अंतोमुत्तूर्ण) हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम चौथाई पल्योपम की, उत्कृष्ट अन्तर्मुहर्त कम अर्द्ध पल्योपम और पांच सौ वर्ष की है। अंतोमुहुत्त) धन्य भने उत्कृष्ट मन्तभुत (पज्जत्तयाणं पुच्छा ?) पHिaril २७ ? (गोयमा जहण्णेणं चउभागपलियोवमं अंतोमुहुत्तणं, उक्कोसेणं पलिओवमं वाससहस्समभहियं अंतोमुहुत्तणं) गौतम | धन्य पक्ष्या५मनाया। ભાગમાં અન્તર્મુહૂર્ત ઓછા અને ઉત્કૃષ્ટ એક પપમ અને એક હજાર વર્ષમાં અન્તર્મુહૂર્ત એાછા
(सूरविमाणेणं भंते ! देवीणं पुच्छा ?) मावान् ! सूय विमानमा क्यानी स्थिति सी ? (गोयमा ! जहण्णेणं पलिओवमं, उक्कोसेणं अद्ध पलिओवमं पंचहि वाससएहिमभहियं) गौतम ! धन्य ५८यो५मना या n bट पांयसे१५ मधि४ मे पक्ष्यापम (अपज्जत्तियाणं पुच्छा १) अपर्यास४ स्य विमाननी वियोनी स्थिति दी ? (गोयमा ! जहणेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्त) गौतम । धन्य मन कृष्ट सन्तभुइतनी (पज्जत्तियाणं पुच्छा ?) पर्यास हेवियानी छ ? (गोयमा ! जहण्णेणं चउभागपलिओवमं अंतोमुहुत्तणं उक्कोसेणं अद्धपलिओवम पंचहिं वाससएहिमभहियं अंतोमुहत्तणं) गौतम ! -