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प्रमेयबोधिनी टीका पद ३ सू.३४ क्षेत्रानुसारेण पञ्चन्द्रियाद्यल्पबहुत्वम् ३२७ तिर्यग्लोके संख्येयगुणाः, अधोलोके संख्येयगुणाः, तिर्यग्लोके असंख्येयगुणाः ।। ___टीका- अथ पञ्चेन्द्रियाणामल्पबहुत्वमाह-'खेत्ताणुवाएणं' क्षेत्रानुपातेनक्षेत्रानुसारेण प्ररूप्यमाणाः 'सव्वत्थोवा पंचिंदिया तेलोक्के' सर्वस्तोका:-सर्वेभ्योल्पाः पञ्चेन्द्रियास्त्रैलोक्ये-लोकत्रयवर्तिनो भवन्ति, अधोलोकालोके, ऊर्ध्वलोकाद्वाऽधोलोके अन्यकायानां पञ्चेन्द्रियायुरनुभवताम् ईलिकागत्या समुत्पधमानानां, पञ्चेन्द्रियाणाश्चोर्ध्वलोकादधोलोके, अधोलोकार्बलोके वा पञ्चेन्द्रियत्वेन अन्यकायत्वेन वा समुत्पित्सूना मारणान्तिकसमुद्घातेन समवहतानां समुद्घातवशाच्चोत्पत्तिदेशं यावत् प्रक्षिप्तात्मप्रदेशदण्डानां पञ्चन्द्रियायुः प्रतिसंवेयलीए असंखेनगुणा) ऊवलोक-तिग्लिोक में असंख्यातगुणा हैं। (तेलोक्के संखेनगुणा) त्रैलोक्य में संख्यातगुणा हैं (अहोलोयतिरियलोए संखिज्जगुणा) अधोलोक-तिर्यग्लोक में संख्यातगुणा हैं (अहोलोए संखेज्जगुणा) अधोलोक में संख्यातगुणा हैं (तिरियलोए असंखिज्जगुणा) तिर्यग्लोक में असंख्यातगुणा हैं। __ अब पंचेन्द्रिय जीवों का अल्पबहत्व कहते हैं
टीकार्थ-क्षेत्र के अनुसार प्ररूपणो की जाय तो सब से कम पंचेन्द्रिय जीव त्रिलोकस्पर्शी हैं, क्योंकि वही जीव तीनों लोकों को स्पर्श करते हैं जो ऊर्ध्वलोक से अधोलोक में या अधोलोक से ऊर्ध्वलोक में उत्पन्न हो रहे हों, पंचेन्द्रिय की आयु का अनुभव कर रहे हों और ईलिकागति से उत्पन्न हो रहे हों, अथवा जो पंचेन्द्रिय ऊर्चलोक से अधोलोक में या अधोलोक से ऊर्ध्वलोक में पंचेन्द्रिय रूप से या अन्य रूप से उत्पन्न होते हुए मारणान्तिक समुद्घात कर रहे हों और अपने उत्पत्तिदेश पर्यन्त जिन्होंने आत्मप्रदेशों को फैलाया हो गुणा) Balas तियोमा मसयाdगए। छ. (तेलोक्के स खेज्जगुणा) त्रैलो४यमा सण्यात छे. (अहोलोयतिरियलोए संखेज्जगुणा) अधाता-तिसभा सण्यातगा छे. (अहोलोए सखेज्जगुणा) मधेसमा सयात छ. (तिरियलोए अस खिज्जगुणा) तिय सभा मण्यात छे.
ટીકાર્થ-હવે સૂત્રકાર પંચેન્દ્રિય જીવોના અ૫બહુવનું કથન કરે છે.
ક્ષેત્ર અનુસાર પ્રરૂપણ કરવામા આવે છે. સૌથી ઓછા પચેન્દ્રિય જીવો ત્રિલેક સ્પશી છે. કેમકે એ જ જીવે ત્રણે લોકોને સ્પર્શ કરે છે. કે જે ઉર્વલકથી અધોલેકમાં અથવા અધલોકથી ઉર્વલોકમાં ઉત્પન્ન થતા હોય, પચન્દ્રિયેના આયુષ્યને અનુભવ કરી રહેલ હોય અને ઇલિકા ગતિથી ઉત્પન્ન