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प्रमेययोधिनी टीका पद ३ सू.३३ क्षेत्रानुसारेण द्वीन्द्रयाद्यल्पवहुत्वम् ३१५ सर्वस्तोकाश्चतुरिन्द्रिया जीवाः पर्याप्तकाः ऊलोके, ऊर्थलोकतिर्यग्लोके असंख्येयगुणाः, त्रैलोक्ये असंख्येयगुणाः, अधोलोकनियंग्लोके असंख्येयगुणाः, अधोलोके संख्येयगुणाः, तिर्यग्लोके संख्येयगुणाः ॥ सू० ३३ ॥ ____टीका-अथ द्वीन्द्रियादीनामल्पबहुत्ववक्तव्यतां प्ररूपयितुमाह-'खेत्ताणुबाएणं' क्षेत्रानुपातेन-क्षेत्रानुसारेण प्ररूप्यमाणा 'सब्बयोवा बेइंदिया उडलोए' सर्वस्तोकाः-सर्वेभ्योऽल्पाः, द्वीन्द्रियाः अवलोके तत्प्रतरवर्तिनो भवन्ति, तेपामूर्ध्वलोकस्यैकदेशे मेरुशिखरस्य वाप्यादौ शहादि सझावात्, सर्वस्तोकत्वं वोध्यम्, __(खेत्ताणुवाएणं) क्षेत्र की अपेक्षा (सव्वयोवा व उरिदिया जीवा पज्जत्तगा उड्ढलोए) सब से कम चौइन्द्रिय पर्याप्त जीव ऊर्ध्वलोक में हैं (उड्ढलोयतिरियलोए असंखेज्जगुणा) अर्थलोक तिर्यग्लोक में असंख्यातगुणा हैं (तेलोक्के असंखेज्जगुणा) त्रैलोक्य में असंख्यातगुणा हैं (अहोलोयतिरियलोए असंखेज्जगुणा) अधोलोक-तिर्यग्लोक में असंख्यातगुणा हैं (अहोलोए संखेज्जगुणा) अधोलोक में संख्यातगुणा हैं (तिरियलोए संखेज्जगुणा) तिर्यग्लोक में संख्यातगुणा हैं ॥३३॥ __ अब द्वीन्द्रिय और चौइन्द्रिय जीवों के अल्प बहुत्व की प्ररूपणा करने के लिए कहते हैं।
टीकार्य-क्षेत्र के अनुसार प्ररूपणा करने पर सब से कम द्वीन्द्रिय जीव ऊर्ध्वलोक में हैं क्यों कि ऊर्बलोक के एक भाग-मेरुशिखर की वावडी आदि में ही शंख आदि पाये जाते हैं। उनकी अपेक्षा ऊर्ध्व
(खत्ताणुवाएणं) क्षेत्रनी अपेक्षाय (सव्वत्थोवा चउरिदिया जीवा पज्जत्तगा उद्दढलोए) सौथी । यौद्रिय ७१ पर्याप्त मा छे. (उड्ढलोय 'तिरियलोए अस खेज्जगुणा) Bas-तियोHi सयात या छे. (तेलोक्के असंखिज्जगुणा) ३४यमा असया ॥ छ. (अहोलोयतिरियलोए असंखिजगुणा) अधो-तियोमा असण्यात गए। छे. (अहोलोए संखिज्जगुणा) अधोसोभा सयात छे. (तिरियलोए संखेजगुणा) तिय લેકમાં સંખ્યાત ગણા છે. એ ૩૨ છે
ટીકાથ-હવે સૂત્રકાર હીન્દ્રિય–ત્રીન્દ્રિય-અને ચૌઈન્દ્રિય જીવોના અલ્પ બહુવની પ્રરૂપણ કરવા માટે કહે છે,
ક્ષેત્રના અનુસાર પ્રરૂપણા કરવાથી સૌથી ઓછા હીન્દ્રિય-બે ઈન્દ્રિયવાળા ઉલકમાં છે. કેમકે-ઉર્વલકના એક ભાગ રૂપ મેરૂ શિખરની વાવડી વિગેરેમાં જ શંખ વિગેરે મળી શકે છે. તેના કરતાં ઉદ્ઘલેક-તિર્થંકલેક નામના બે પ્રારેમાં અમૃખ્યાત ગગ છે. કેમકે જે જીવ તિર્થંકલેકમાંથી ઉર્વલોકમાં