SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 259
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद ३ सू.२६ धर्माधर्मास्तिकायादि जीवाल्पचहुत्वम् २४१, कायस्य द्रव्यार्थप्रदेशार्थतया कतरे कतरेभ्योऽल्पा वा, बहुका वा, तुल्या वा, विशेषाधिका वा ? गौतम ? सर्वस्तोको जीवास्तिकायो द्रव्यार्थतया सचैव प्रदेशार्थतया असंख्येयगुणः, एतस्य खलु भदन्त ! पुद्गलास्तिकायस्य द्रव्यार्थप्रदेशार्थतया कतरे कतरेभ्योऽल्पा वा, वहुका वा, तुल्या वा, विशेपाधिका वा ? गौतम ! सर्वस्तोकः पुद्गलास्तिकायो द्रव्यार्थतया सचैव प्रदेशार्थतया असंख्येयगुणः अद्धासमयो न पृच्छयते प्रदेशाभावात्, एतेषां खलु भदन्त ! धर्मास्ति(से चेव पएसट्टयाए अणंतगुणे) वही प्रदेशों की अपेक्षा से अनन्तगुणा है । (एयस्स णं भते !जीवत्थिकायस्स) हे भगवन् ! इस जीवास्तिकाय के (दव्वट्ठपएसट्टयाए) द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा (कयरे कयरेहितो) कौन किससे (अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा?) अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (सव्वत्थोवे जीवत्यिकाए दवट्टयाए) सबसे कम जीवास्तिकाय द्रव्य की अपेक्षा से है (से चेव पएसट्टयाए असंखेजगुणे) वही प्रदेशों की अपेक्षा से असंख्यातगुणो हैं । (एयस्स णं भंते ! पोग्गलस्थिकायस्स दवट्ठपएसट्टयाए) हे भगवन् ! इन पुद्गलास्तिकाय के द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा से (कयरे कयरेहिंतो) कौन किससे (अप्पा वा वहया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ?) अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (सव्वत्थोवे पोग्गलथिकाए दवट्टयाए) सबसे कम पुद्गलास्तिकाय द्रव्य की अपेक्षा से है (से माछा मे म स्तिय छ द्रव्यनी अपेक्षाय (से चेव परसदृयाए अणंतगुणे) તેજ પ્રદેશની અપેક્ષાએ અનન્તગણ છે) __(एयस्स णं भते । जीवस्थिकायस्स) लगवन् ! मा पस्तियना (दव्वट्ठपएसद्वयाए) द्र० गते प्रशानी अपेक्षाये (कयरे कयरेहितो) जनाथी अप्पा वा वहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा २५, घ, तुल्य अथवा विशेषाधि छ ? - (गोयमा!) गौतम । (सव्वत्थोवे जीवत्थिकाए दव्वट्ठयाए) द्रव्यानी अपेक्षा माथी म तिय छ (से चेव पएसट्टयाए असंखेजगुणे) ते प्रहेશેની અપેક્ષાએ અસંખ્યાતગણુ છે (एएस्स णं भते । पोग्गलस्थिकायरस दव्वट्ठपएसट्टयाए) मापन् । मा पुनसास्तियन द्रव्य मने प्रशानी मपेक्षाये (कयरे कयरेहिंतो) आधु नायी (अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा) २८५, घा, तुझ्य, અગર વિશેષાધિક છે? प्र०३१
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy